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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् ॥१३॥ ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय अने अंतराय कर्मनो उत्कृष्ट स्थितिबंध ३० क्रोडाक्रोड सागरोपमनो, मोहनीय कर्मनो ७. क्रोडाकोड सागरोपमनो, नाम-गोत्रनो २० कोडाकोड सागरोपमनो अने आयुः कर्मनो उत्कृष्ट स्थितिबंध ३३ सागरोपमनो थाय छे. वेदनीय कर्मनी जघन्य बंधस्थिति १२ मुहूर्तनी, नाम गोत्रनी मुहूर्तनी भने बाकीनां कर्मनी अंतमुहूर्तनी होय छे. शुभाशुभ कर्मनो विपाकनामे अनुभागबंध बंध समये ज रस विशेषतुं निर्माण करे छे ते रसनुं वेदवू, अनुभव ते विपाक. तेवो विपाक नामकर्म पैकी गत्यादिक स्थानोमा जेम जेम परिपाकपणाने पामे के तेम तेम अनुभवातो जाय छ, प्रदेशबंध तो जेम एक आत्मप्रदेशमा ज्ञानावरणना अनंत पुद्गलो (कर्म-वर्गणाना) के तेम बीजां कर्मनां पण अनंत पुद्गलो रहेला होय छे ते जाणवो. ३६ तत्र प्रदेशवन्धो योगात्तदनुभवनं कषायवशात् । स्थितिपाकविशेषस्तस्य भवति लेश्याविशेषेण ॥ ३७॥ भावार्थ-तेमां प्रदेशबंध मन वचन अने कायना योगे करीने थाय छ, कषायना वशथी ते अनुभाग (रस) बंध थाय छे, अने लेश्याना तारतम्यवडे करीने स्थितिबंधनुं निर्माण थाय छे. ३७ विवेचन-तेमां प्रदेशवंध ( ज्ञानावरणादिक कर्म पुद्गलोनो आत्मप्रदेशोमा उपचय ) मन वचन अने कायाथकी थाय छे. ते प्रदेशबद्धकर्मर्नु अनुभवयु कषायवशथी थाय छे. ते कर्मनी स्थिति तथा रसनी निष्पत्ति लेश्याविशेषवडे उत्कृष्ट, मध्यम के जघन्य थाय के एम समजवू. ते लेश्या कइ अने केटली छे ? ते शास्त्रकार जणावे छे. ३७ * ॥१३॥ Jain Education Internet For Personal Private Use Only M.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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