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________________ श्री . प्रशमरति प्रकरणम् ॥१२॥ विवेचन-आत्माना छता ज्ञान दर्शनादिक गुणोने आवरण-आच्छादन करनारा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष् , नाम, गोत्र अने अंतराय-एम मूळ कर्मनो बंध आठ प्रकारे छे. जेनाथी क्षायोपशमिक अने क्षायिक ज्ञानगुण अवराइ जाय ते ज्ञानावरणीय, जेनाथी चक्षु-दर्शनादिक अवराइ जाय ते दर्शनावरणीय (निद्रादिक पंचक सहित, केमके ते पण दर्शनने आवरे ज छे.), सुखानुभव लक्षण अने दुःखानुभव लक्षण वेदनीय कर्म छे. जेनाथी जीव मुंझाय ते मोह अनन्तानुबंधी आदि कषाय तथा मिथ्यात्वरूप छे. जे कर्मना प्रसादथी जीव प्राणने धारण करे छे ते आयुष् कर्म कहेवाय छे. जेनाथी गति जात्यादिक स्थान प्राप्त थाय ते नामकर्म. विशिष्ट कुळ, जाति अने ऐश्वर्यादिक पमाडवा समर्थ ते उच्च गोत्र, तेथी विपरीत ते नीच गोत्र अने दान लाभादिकमां विघ्न करनार अंदराय कर्म कहेवाय छ. 'ते आठे कर्मना उत्तर भेद केटला छे ते बताचे छ.' ज्ञानावरणीय कर्मना मतिज्ञानावरणीय प्रमुख पांच भेद छे. दर्शनावरणीय कर्मना चक्षुदर्शनावरण प्रमुख चार तथा निद्रापंचक मळीने नव भेद थाय के. वेदनीय कर्मना शाता अने अशाता एवा वे भेद छे. मोहनीय कर्मना अनन्तानुबंध्यादिक चार प्रकारे चारे कषाय मळी १६ कषाय, हास्यादिक पदक अने त्रण प्रकारना वेद मळी नव नोकषाय, तेमज समकित, मिश्र अने मिथ्यात्व मोहनीय एम सर्व मळी तेना २८ भेद छे. देव, मनुष्य, तिर्यच अने नरकना आयुष्य मळी आयुःकर्मना धार भेद के नामकर्मना ४२ भेद नीचे मुजब कह्या छे. गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम, अंगोपांगनाम, Jain Education in For Personal Private Use Only Now.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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