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________________ दडानी जेम सहायक-धर्मास्तिकायना अभावे लोकान्त थकी उपर पण जता नथी अने मन वचन कायाना योग अने तेना प्रयोगना प्रभावे तेमनी तिी गति पण थती नथी, मुक थयेला एवा सिद्धनी लोकना अंत सुधी उर्ध्वगति ज थाय छे. भावार्थ-भारेपणाना अभावे नीचे न जाय. कर्ममुक्त नीचे जाय ए वात बनवी अशक्य छे. पाषाणादि भारे द्रव्य होय ते नीचे जाय. कर्ममुक्त थवाथी तेनामा भारेपणुं छेज नहि, के जेथी ते नीचे जाय. वळी जेम वहाण अथवा मच्छादिक तेने सहायकारी जळना अभावे स्थळमा जइ न शके तेम सहायकारी धर्मास्तिकाय द्रव्यना अभावे मुक्त आत्मा पोते लोकान्त थकी आगळ ( अलोकमां) जवा पामे नहि. मन वचन अने काय लक्षण योग तेना अभावथी तथा आत्मानी क्रियारूय प्रयोग तेना अभावथी, पूर्वपश्चिमादिक तिर्की दिशाओमां पण ते मुक्त आत्मानी गतिनो संभव नथी. ए रीते नीचे तेमज तिर्की गतिनो असंभव होवाथी अने अही अवस्थान करवामां कशुं कारण न होवाथी मुक्त आत्मा उंचेज जाय छे. ते उर्ध्व गति लोकान्त सुधीज थाय छे. धर्मास्तिकायरूप सहायना अभावे अलोकमां गति थती नथी ए वात प्रथम पण कहेवायेल छे. २६-२६३ निष्कय-क्रिया रहित छतां पण ते मुक्त भात्मानी उर्ध्व गति केम थवा पामे के ? एवी शंका उठावी शास्त्रकारज तेनुं समाधान करता सता कहे छ:पूर्वप्रयोगसिद्धेवन्धच्छेदादसंगभावाच । गतिपरिणामाच तथा सिद्धस्योर्ध्वगतिः सिद्धा ॥ २६४ ॥ For Personal Private Use Only Tirirainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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