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________________ भ्यवसाय रूप मेदो ए पर्याय कहेवाय छे. अने शब्दोना भाव (रहस्य ), द्रव्योना गणित अथवा धर्मास्तिकायादिक अर्थ कहेवाय छे. एक सूत्रपदना अनेक अर्थ थइ शके छे. अपूर्व अर्थ रहस्य उपार्जन करवाना अमोघ उपाय रूप अन्वय व्यतिरेकी हेतु कहेवाय छे. प्राप्त अर्थरहस्यने रक्षवाना उपायरूप नैगमादिक नयो कहेवाय छे. संस्कृत प्राकृतादिक विधविध भाषादिक शब्दो कहेवाय छे अने आमोसही प्रमुख लब्धियो ते अत्र रत्नो लेवाना छे. ए सर्ववडे समृद्ध एवं शासनपुर छे. तेमां मारी जेवा अल्पश्रुतने प्रवेश करवो दुष्कर छे. वस्तुस्थिति आम छे तोपण ग्रंथकार पोते प्रस्तुत वातर्नु आवी रीते समाधान करे के के हुं समस्त श्रुत ( दृष्टिवाद पर्यंत) ज्ञाननी संपदाथी हीन छु, तेमज ' कोष्टबुद्धि' 'बीजवुद्धि' अने ‘पदानुसारी बुद्धि' विगेरे बुद्धि संबंधी संपदाथी रहित छु तोपण हुं आत्मगत अशक्ति-असामर्थ्यनो विचार नहिं करता जेम कोइक रंक-निर्धन देवता पासे ढांकेली वस्तुओना कणीया एकठा करीने स्व-उदरपोपण करे छे अथवा जेम क्षेत्रमाथी धान्य लणी लीधा पछी भूमि उपर पडी रहेला-विखरेला धान्यना कणीया वीणी वीणीने कोइ पोतानी उदरपूरणा करे छे. तेम पूर्व पुरुष-सिंहोए स्वमतिवडे प्रवचन अर्थर्नु अनेकवार दोहन कर्यु छ तेमांनो जे काइ अन्पांश मने उपलब्ध थइ शके ते गवेषी लेवाने हुं सर्वज्ञशासनपुरमा प्रवेश करवा इच्छु छु, जेम रत्नोवडे समृद्ध नगरमा रंक जननो प्रवेश थवो दुर्लभ छ तेम सर्वज्ञशासनमा पण श्रुतबुद्धिविकळ जनने प्रवेश करवो ते अति कठिन छे. ३-४. तेवीज पोतानी वृत्ति त्रण कारिकावडे बतावे छे Jan Education For Personal Private Use Only Www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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