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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् ॥२॥ के समस्त कहेवानी मारी शक्ति नथी तोपण ग्रहण, धारण अने अर्थ निश्चय करवामां वधारे दुर्बल एवा भव्यजनोना | हृदयमा पाडेलो प्रशमामृतनो स्वल्प पण बिंदु तेमने म्होटो उपकार करे छे भने उपगारीनो ते भव्योपकार स्वपरहित प्रति विशिष्ट फळदायी नीवडे छे माटे ग्रंथकार कहे छे के हुँ जिनशासनमाथी ज किंचित् मात्र कहीश. २. ___ अबहुश्रुतने तो ते जिनशासनमा प्रवेश करवो पण कठण छे, ए वात बे आर्यावडे ग्रंथकार बतावे छेयद्यप्यनन्तगमपर्ययार्थहेतुनयशब्दरत्नाढ्यम् । सर्वज्ञशासनपुरं प्रवेष्टुमबहुश्रुतैर्दुःखम् ॥३॥ श्रुतबुद्धिविभवपरिहीणकस्तथाप्यहमशक्तिमविचिन्त्य । द्रमक इवावयवोंछकमन्वेष्टुं तत्प्रवेशेप्सुः ॥४॥ भावार्थ-यद्यपि अनंत गम, पर्याय, अर्थ, हेतु, नय अने शद्वरूप रत्नोथी भरपूर एवा सर्वज्ञ शासनरूप नगरमा अबहुश्रुतपणावडे प्रवेश पामवो दुष्कर छ तोपण श्रुतज्ञानना अभ्यास थकी उत्पन्न थयेली बुद्धिनी संपदाथी हीन छतां मारी अन्पशक्तिनो विचार को विना जेम भिक्षुक धान्यना कणीया शोधवाने माटे नगरमा प्रवेश करवाने इच्छे तेम हूं | पण सर्वज्ञशासनपुरमा प्रवचन अवयवोने एकठा करी लेवा माटे प्रवेश करवा इच्छु छु. ३-४ विवेचन–अनन्त गमा अने पर्यायोवडे जेनो अर्थ लभ्य छे एवा जिनशासनमां मारी जेवा अबहुश्रुत-अल्पश्रुतने * प्रवेश करवो अति कठण होवाथी तेनुं समस्त रहस्य कहेवू अशक्यज छे. तेमा स्यादस्ति स्यान्नास्ति विगेरे सप्त भंगी सात विकल्पो रूप मार्गो अने सरखा पाठ ए गमा कहेवाय छे. कोइपण वस्तु संबंधी क्रम परावती भेदो अथवा क्रिया Jan Education For Personal Private Use Only Masainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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