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________________ सिद्ध एटले जमनां सकळ कार्य सर्या छ भने सर्व कर्मनो संपूर्ण उच्छेद करवाथी जे लोकाग्रे रह्या छे, तेमज जे सर्वदा स्वाधीन सुखने अनुभवनारा छे, प्राचार्य एटले पांचे प्रकारना आचारमां स्थित तेमज तेनो उपदेश देवावाळा होवाथी परम भागमार्थने प्रदर्शित करवामां कुशळ, उपाध्याय एटले जेमनी समीपे शिष्यो विनय-विवेकपूर्वक सकळ दोष रहित सूत्रसंपदाने पामी शके छ भने साधु एटले सम्यग् ज्ञान दर्शन अने चारित्ररूप संयुक्तशक्ति-पुरुषार्थवडे जेओ मोक्षसुखने साधे छे, एवा सर्व साधुसमुदायने प्रणाम करवाथी जेमणे तरत ज संसार तजी, दीक्षा ग्रहण करी, समस्त पापव्यापारनो परिहार करवा रूप समता-सामायिकने आदरेल छे तेवा अद्य दीक्षित साधुजनो पण प्रणाम करवा योग्य छ एम ग्रंथकार जणावे छे. अथवा सर्व कहेवाथी समस्त अरिहंतादिक पांचने प्रणाम करेलो जणावे छे. एवी रीते इष्टदेवने उद्देशी प्रणाम करवा रूप मंगलाचरण कयु. वळी आसन्न उपगारी एवा आचार्य प्रमुखने नमस्कार करी, श्रा प्रस्तुत ग्रंथ करवानुं प्रयोजन अने तेनी यथार्थता पाछली अर्धी कारिकावडे प्रदर्शित करे छे-राग द्वेष रहितता एज प्रथम वैराग्य छे, एवं आगळ उपर ग्रंथकारे एक गाथामां स्पष्ट कर्यु छ, तेवा वैराग्यरूप प्रशममा रति-शक्ति-प्रीति-तेमां निश्चळता करवा माटे एटले मोक्षार्थी भव्यजीवथी केवी रीते प्रशमरतिमा स्थिर थवाय ? ते जणाववाना आशयथी आ प्रकरण रचवामा भान्यु छे. अने ते पण जिनशासनथकी ज पमाय छे, केमके अन्यत्र एवा प्रशमनो प्रभाव छे. जेवू सर्व आश्रवनो निरोध करवामां दक्ष जैन शासन प्रवर्ते छ, तेवू अन्य कोइ शासन नथी. आचारांगथी लही दृष्टिवाद पर्यत द्वादशांग प्रवचन प्रशमकारी के अने ते रत्नाकरनी पेठे अनेक आश्चर्यनुं निधान छे. तेमांथी आ ग्रंथकार कहे छ के हुँ किंचित् मात्र कहीश. जो Jain Education intiemetorsal For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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