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प्रशमरति प्रकरणम्
भावार्थ-जैनी आदिमा नाभिराजाना पुत्र ऋषभदेव के अने अंतमा सिद्धार्थराजाना पुत्र वर्धमान के एवा चरम शरीरी पांच, नव अने दश एटले चोवीश जिनो क्षमादिक धर्मविधिने जाणनारा जयवंता वर्ते छे. १ - विवेचन-नाभि नामना कुलकरना पुत्र श्री ऋषभ-आदिदेव जेमनामा प्रथम थया के अने सिद्धार्थ राजाना पुत्र श्री वर्धमान प्रभु जेमनाम छेल्ला थया छे एवा चरमशरीरी अने दश प्रकारना धर्ममार्गना संपूर्ण रीते जाणनारा चोवीशे जिनवरो जयवंता वर्ते छे. चरमशरीरी एटले जे शरीरने धारण कर्या पछी भवभ्रमणनो अंत करवाथी पछी पालो बीजो देह धारण करवानुं जेमने काइपण प्रयोजन ज नथी तेवा, अने दशविध धर्मविधिना जाण एटले जे क्षमादि दश प्रकारना यतिधर्मनुं स्वरूप आगळ जणाववामां आवशे तेनुं संपूर्ण स्वरूप केवळज्ञान प्राप्त थयाथी जेमने जणायुं छे अने त्यारवाद मुमुक्षु जनोप्रत्ये तेनो जेमणे उपदेश आप्यो छे एवा समस्त तीर्थकरो रागद्वेषादिक अंतरंग शत्रुवर्गनो संपूर्ण रीते उच्छेद करनारा होवाथी सर्वदा जयवंता वर्ते छे. १ जिनसिद्धाचार्योपाध्यायान् प्रणिपत्य सर्वसाधूंश्च । प्रशमरतिस्थैर्यार्थ वक्ष्ये जिनशासनात्किंचित् ॥ २॥
भावार्थ-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने सर्व मुनिजनोने प्रणाम-नमस्कार करीने वैराग्यरसनी दृढताने माटे श्री जिनशासनना आधारे कंइक कहीश.२
विवेचन-जिन एटले तीर्थकरो अथवा जेमने केवळज्ञानादि संपदा प्राप्त थइ छ एवा बीजा सामान्य केवलीओ,
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