________________
भेद छ, अने तेना उत्तर भेद १७ थाय छे. तेमां २५ क्रिया भेळवता ४२ भेद थाय छे. परंतु ए सर्वमा मुख्यता योगनी छ. योगनी साथे कषायादि भळवाथी प्राणी शुभाशुभ कर्म बांधे छे; एटले मन वचन कायाना योगनो आगमकथनपूर्वक व्यापार अर्थात जे रीते पागमोमां कर्तव्याकर्त्तव्य बतावेलुं छे ते प्रमाणे समजीने कर्त्तव्य आचरवू अने अकर्त्तव्य तजवू तेथी पुण्याश्रव थाय छे. अर्थात् पुण्यप्रकृति-शुभ प्रकृति बंधाय छः अने खेच्छापूर्वक मन वचन कायानो जे व्यापार एटले पौद्गळिक भावमा राचवु माचवू, कर्त्तव्य न करवू अने अकर्त्तव्य करवू तेथी पापाश्रव थाय छे. अर्थात् पाप प्रकृतिअशुभ प्रकृति बंधाय छे. अहीं शुभ या अशुभ कर्मर्नु आवq तेने पाश्रव कहेल छे. आत्मानी साथे ते कर्मपुद्गलोनुं जे बद्ध थq तेनो बंध तरीके बंधतत्वमा उपदेश करेलो छ. शुभ के अशुभ कोइ पण प्रकारना कर्म बांधवा तेथी जीव संसारमा भमे छे-छुटी शकतो नथी, तेथी आश्रवतत्वना बे भेद छतां तेने हेय-त्याज्यज गणेल छे.
आ श्लोकना पूर्वाधा आश्रवतत्त्वनुं निरूपण करीने उत्तरार्धमां संवर तत्व टुंकामां समजावेल छे. शास्त्रकार मन, वचन अने कायानी गुप्ति-तेने गोपववा-पोताने वश करवा-यथेच्छ प्रवर्तवा न देवा, तेने निराश्रव अथवा संवर कहे छे.
श्रा संवर आश्रवना द्वारनो रोध करनार छे. तेना समिति, गुप्ति, परिसह, यतिधर्म, भावना ने चारित्र एवा मुख्य ६ भेद | छे अने तेना उत्तर भेद ५७ थाय छे. समितिगुप्तिपुरःसर मन वचन कायानी जे प्रवृत्ति ते संवर छे. संवरना बीजा पण अनेक मेदो छे. आश्रव ने संवर तत्वनुं विशेष स्वरूप जाणवाना इच्छके नवतत्त्वादि प्रकरणोनुं ज्ञान मेळव. २२०
हवे निर्जरा, बंध ने मोक्ष-ए त्रण तत्त्वनुं स्वरूप कहे छ:
Jain Education International
For Personal Private Use Only
www.jainelibrary.org