SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पचीस वर्ष अपर छे, आम परत्वापरत्व पण काळकृत ज छे. अर्थात् तेने अपेक्षीने ज कहेवाय छे. या प्रमाणे परिणाम वर्तना अने परापरत्ववडे काळद्रव्य जाणी-पोळखी शकाय छे. जीवद्रव्य शुं शुं उपकार करे छे ? उत्तर-तत्वार्थश्रद्धानरूप है| सम्यक्त्व उत्पन्न करे छे, श्रुतादि ज्ञान उपजावे छे, क्रियानुष्ठानरूप चारित्रनो उपदेश करे छ अने शक्तिविशेष जे वीर्य तेने देखाडे छे तथा लिपि-अक्षरादि संविज्ञान उत्पन्न करे छे. श्राबधा जीवकृत उपकार छे. २१८. इति जीवाजीव स्वरूपं. जीव अने अजीव तत्ववें निरूपण कर्या पछी हवे पुण्य पाप-ए बे पदार्थने ओळखवा माटे शास्त्रकार कहे छःपुद्गलकर्म शुभं यत्तत्पुण्यमिति जिनशासने दृष्टम् । यदशुभमथ तत्पापमिति भवति सर्वज्ञनिर्दिष्टम् ।२१६। भावार्थ-शुभ एवां जे कर्मनां पुद्गळ ते पुन्य अने अशुभ एवां कर्मनां पुद्गल ते पाप एम सर्वज्ञ भगवाने कयुं छे. २१९ विवेचन-आठ कर्मनी उदयमा १२२ उत्तर प्रकृतिओ होय छे. तेमा मिश्रमोहनी तथा समकितमोहनी एबे भलेली छ. तथा वर्ण, गंध, रस ने स्पर्श ए चार नामकर्मनी प्रकृतिमो शुभ अशुभ बन्ने प्रकारनी होवाथी १२६ प्रकृति उदयमां थाय छे. तेमां उच्च गोत्र, सातावेदनी, मनुष्यनी गति इत्यादि ४२ प्रकृति यो जे शुभ ले ते पुण्य नामथी ओळखाय छे. अर्थात् फळरूपे प्रदर्शित थती ए ४२ पुण्यप्रकृति कहेवाय छः अने पांच ज्ञानावरणी, नव दर्शनावरणी, पांच अंतराय, मिथ्यात्वादि १४ Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy