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शरीर, मन, बचन ने काया, तेनी चेष्टा (क्रिया), श्वासोच्छ्वास ए सर्व पुद्गलना ज परिणाम छे. दुःख अने सुख पण प्रशमरति पुद्गलजनित ज छ. जीवितने उपग्रह करनारा दूध, घी विगेरे अने मरणने उपग्रह करनारा विष, गरल विगेरे ते सर्वे प्रकरखा
पुद्गलना ज उपकार (परिणाम) छे. अहीं उपकार, परिणाम, स्वभाव एकार्थवाची समजवा. एटले उपर बतावेला बधा
वानां पुद्गलस्कंधोबडे ज थाय छे. ते तेनो ज स्वभाव छे. तेमांना केटलाक भाव जीवनी साथे भळवाथी थाय छे अने ॥७८॥
केटलाक स्वाभाविक थाय छे; परंतु जीवना भळवाथी जे थाय छे ते पण स्वभाव के परिणाम तो पुद्गल स्कंधोनो ज समजवो. २१६-२१७.
हवे काळ अने जीवद्रव्यना उपकार बतावे छे:परिणामवर्तनाविधिपरापरत्वगुणलक्षणः कालः । सम्यक्त्वज्ञानचारित्रवीर्यशिक्षागुणा जीवाः ॥ २१८॥
भावार्थ-परिणामवर्तनारूप अने परापरत्व गुणवाळू काळद्रव्य छे. सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र अने वीर्य शिक्षा गुणवाळा जीवो छे. २१८.
विवेचन-वृक्षादिना अंकुर वधे छे, घटे छे, क्षय पामे छे ए काळजनित उपकार के. मा वर्ते छे, मा नथी वर्ततुं ए पण काळने अपेक्षीने ज कहेवाय छे तेथी ते पण काळकृत उपकार छे. पांच वर्षथी दश वर्ष पर छे अने पचास वर्षथी
१ हानि वृद्धिरूप. २ गुरु-लघुपणुं (वयमा एकबीजाथी न्हाना-म्होटापणुं).
॥७८॥
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