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अवकाश आपे छ एम नथी. २१५. ___ हवे पुद्गल द्रव्य शुं उपकार करे छे ते कहे छ:स्पर्शरसगन्धवर्णाः शब्दो बंधश्च सूक्ष्मता स्थौल्यम् । संस्थानं भेदतमश्छायोद्योतातपश्चेति ॥ २१६ ॥ कर्मशरीरमनोवाविचेष्टितोच्छासदुःखसुखदाः स्युः। जीवितमरणोपग्रहकराश्च संसारिणः स्कन्धाः ॥२१७॥ ___ भावार्थ--स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अंधकार, छाया, उद्योत अने आतप ए सर्व पुद्गलस्कंधो संसारी जीवोने कर्म, शरीर, मन, वाक्चेष्टा तथा उच्छ्वासद्वारा दुःख सुख देनारा अने जन्ममरणमा सहाय करनारा थाय छे. २१६-२१७.
विवेचन-पुद्गलो संसारी जीवोने स्कंधपणे अनेक प्रकारे उपकारक थाय छे; परमाणुपणे ते काइ पण करी शकता नथी. हवे तेना उपकार गणावे छे-स्पर्श, वर्ण, रस ने गंध ए पुद्गल द्रव्यना उपकार छ, शब्दपरिणाम पण पुद्गल द्रव्यनो ज उपकार छे, कर्मपुद्गलनो आत्मप्रदेशोनी साथे क्षीर नीरनी जेवो एकलोली भाव थाय छे ते पण पुद्गल द्रव्यनो ज उपकार छ, अनंतप्रदेशी स्कंध जे सूक्ष्म परिणामने पामे छे ते पुद्गलनो उपकार छ तेमज ते स्कंधो अभ्र ने इंद्रधनुष्यादिमां स्थूलपणे परिणमे छे ते पण पुद्गलनो ज उपकार छे, चउरंसादि संस्थान (आकृति) जे थाय छे ते पुद्गलनो उपकार के, खंडरूप भेद थाय छे ते पण पुद्गलनुं परिणाम छ; अंधकार, छाया, चंद्र तारा विगेरेनो उद्योत अने सूर्यादिकनो आतप ए सर्व पुद्गलना ज परिणाम छे, ज्ञानावरणादि कर्म ते पुद्गलनो ज उपकार छे, औदारिकादि
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