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________________ I लोक व्यापकपणे एक द्रव्य समजवु. केमके लोकाकाशने अलोकाकाश एम चे पृथक् द्रव्य नथी. जीवो अनंता छे अने ते चारे गतिमा तेमज सिद्धावस्थामा पृथक् पृथक् स्वरूपे रहेला छे. पुद्गळ पण अनंता छे अने ते परमाणुरूपे तेमज व्यणुकादिथी मांडीने अनंत परमाणुना स्कंधरूपे पृथक् पृथक् रहेला छे. काळद्रव्य अतीत अनागतादि भेदवडे करीने अनंत समयात्मक छे. ___हवे अस्तिकाय शब्द माटे कहे छे के-अस्तिकाय शब्द काळद्रव्य विनाना पांच द्रव्योने माटे छे. कारण के काळ अस्तिकाय नथी, बाकीना पांच अस्तिकाय छे. अस्तिकाय प्रदेशना समृहनु नाम छे. पांच द्रव्योमा प्रदेशोनो समूह छ, काळना प्रदेशचें नाम समय छे. ते समय वर्तमान तो एक समयरूप ज छे. ते समयोनो प्रचय थतो नथी. कारण के वर्त्तमान समय बीजे समये अतीत भावने पामे छे, तेथी काळ अस्तिकाय नथी. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय ने एक जीवना असंख्याता प्रदेश छे. (त्रणे सरखा छे.) आकाश लोकालोक व्यापक होवाथी अनंत प्रदेशी छे. मात्र लोकाकाश असंख्य प्रदेशी छे. पुद्गल द्रव्यो अनंता छे. जीव विनाना पांचे द्रव्यो कर्तृत्वपणाथी शून्य छ, एक जीव ज शुभाशुभ कर्मोनो कर्त्ता छ. २१४ धर्मास्तिकायादि द्रव्योर्नु कार्य अथवा स्वभाव कहे छे:धर्मो गतिस्थितिमतां द्रव्याणां गत्युपग्रहविधाता । स्थित्युपकर्ताऽधर्मो ऽवकाशदानोपकृद्गगनम् ॥ २१५ ।। भावार्थ-गतिपरिणामी जीव अने पुद्गल द्रव्योने गतिमा सहाय देनार धर्मास्तिकाय छे. स्थितिमा सहाय देनार अधमास्तिकाय छे अने अवकाश प्रापवा रूप सहाय करनार आकाशद्रव्य छे. २१५. Educ ational For Personal & Private Use Only IKI www.jainelibrary.org.
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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