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प्रशमरति प्रकरणम्
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कहेवाय छे अने तेथी पर अलोक छे.जे श्राकाशमां जीवाजीवादि पदार्थ पंचक रहेला छे ते लोकाकाश छे भने ज्यां जीवादि पदार्थोनो सर्वथा अभाव छे ते अलोकाकाश छे. लोकाकाश अने अलोकाकाश एवो मात्र जीवादिकना आधारपणाथीज भेद पडेलो छ, बाकी तो ते बने एकरूपज छे. काळ द्रव्य मनुष्यलोकव्यापी छ अर्थात् तेनो मुख्य आधार चर ज्योतिषी उपर रहेलो छ अने चर ज्योतिषी मात्र मनुष्यलोकमां एटणे अढीद्वीपमा ने बे समुद्रमाज छे, तेनी फरतो मानुषोत्तर पर्वत छे. तेटला क्षेत्रनौ अंदरज वर्तमानादि लक्षण काळ द्रव्य छे. बाकी काळनी वर्तना तो सर्वत्र छे. बाकीना चार द्रव्यो धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, पुद्गळ अने जीव लोकव्यापी छे. धर्मास्तिकाय ने अधर्मास्तिकाय लोकव्यापी एक अखंड द्रव्यज छे. सूक्ष्म शरीरबाळा सूक्ष्म एकेंद्रिय जीवो पाखा लोकमां व्यापीने रहेला छे. पुद्गळ पण परमाणु ने स्कंधरूपे आखा लोकाकाशमां सर्वत्र व्यापी रहेल छे. एक जीव पण केवळी समुद्घात करे त्यारे आखा लोकमां सर्वत्रव्यापी जाय छे. २१३.
हवे या द्रव्यो शुं एकेकज छे के अनेक छे? इत्यादि स्वरूप कहे छेधर्माधर्माकाशान्येकैकमतः परं त्रिकभनन्तम् । कालं विनास्तिकाया जीवमृते चाप्यकतृणि ॥ २१४ ॥
भावार्थ:-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने आकाश ए त्रण एकेको छ, बाकीनां त्रण अनंता छे. काळ विना शेष पांच अस्तिकाय छे अने जीव विना अकर्ता छ. २१४.
विवेचन-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने भाकाशास्तिकाय ए त्रणे एकेक द्रव्यज छे. तेमा आकाशने लोका
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