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________________ छे ने उपर घटतो घटतो एक रज्जु प्रमाण छ तिर्यग्लोक एक रज्जुप्रमाण सरखो के अने उर्ध्वलोक नीचे एक रज्जु प्रमाण, मध्ये पांच रज्जु प्रमाण ने उपर एक रज्जु प्रमाण छे. रज्जु असंख्याता योजन प्रमाण होय छे. २१०-११. आत्रणे प्रकारना लोक पैकी अधोलोक रत्नप्रभाथी मांडीने महातमःप्रभा सुधी सात नरकना भेदथी सात प्रकारे छे. तिर्यग्लोक अनेक प्रकारनो छे, कारण के तेमा जंबूद्वीपादि असंख्याता द्वीपो छे अने लवणसमुद्रादि असंख्याता समुद्रो छे. ज्योतिष्कना भेदो पण तिर्यग्लोकमांज छ. उर्ध्वलोकना १५ प्रकार कहेला छे. ते श्रा रीते-९ मुं १० मुं अने ११ मुं १२ मुंए चे बे देवलोकना स्वामी इंद्र एकेकज होवाथी १० प्रकार बार देवलोकना, नव ग्रैवेयकमा त्रण अधो, त्रण मध्य अनेत्रण उपरितन होवाथी त्रण प्रकार नव ग्रेवेयकना, एक प्रकार पांच अनुत्तर विमाननो अने एक प्रकार इषतप्राग्भारा पृथ्वी के जे सिद्धशिलाना नामथी ओळखाय छे, जेनी उपर एक योजने लोकांत आवे छे तेनो, एम सर्व मळीने उर्ध्वलोकना १५ प्रकार थाय छे. २१२. हवे आकाश लोकमात्र व्यापीज छ के विशेष छे ? अने बाकीना द्रव्यो पण शी रीते व्यापेला छे ? ते कहे छेलोकालोकव्यापकमाकाशं मर्त्यलौकिकः कालः । लोकव्यापि चतुष्टयमवशेषं त्वेकजीवो वा ।। २१३ ॥ भावार्थ-आकाश लोकालोकव्यापक छे. काळ मनुष्यलोक संबंधी छे, बाकीना चार (४) लोकव्यापी छ, | तेमज एक जीव पण (केवळीसमुद्घात समये) लोकव्यापी थाय छे. २१३. विवेचन-आकाश मात्र लोकव्यापी नथी पण लोकालोकव्यापी छे. जीवने अजीवना आधारभूत जे क्षेत्र ते लोक Jain Education Interior For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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