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भाव) थी आत्मा आत्मा अने परस्वरूप (परद्रव्य क्षेत्र काळ भाव ) थी आत्मा अनात्मा थाय छे. एवी रीते विविध संयोग तथा अल्पबहुत्वादिवडे जीव अनेक प्रकारे चितववो जीवनुं आ सर्व स्वरूप अहीं लक्षणोवडे अनेकविध प्रतीत थाय छे. उत्पाद, विनाश अने ध्रौव्य लक्षणवाळा जे जे पदार्थों के ते सर्वे सत् अने उत्पाद आदि लक्षण रहित सर्व असत्. तेमज अन्यथा अर्पित, अनर्पितना विशेष थकी ते सत् असतादि (सप्त) भंगीरूपे थाय छे. २०२-२०३-२०४
विवेचन-द्रव्योने द्रव्यात्मा कहेवाथी शंका करे के के-'अचेतन द्रव्योने पण द्रव्यात्मा केम कहो छो? ते काइ आत्मा नथी, ते तो अनात्मा छे.' तेना उत्तरमा कहे छ के 'सर्व द्रव्योमा जे द्रव्यात्मापणुं कहेवाय छे ते उपचारिक छ, अने ते सामान्यग्राही नयभेदे करीने कहेवामां आवे छे. वळी द्रव्यात्मा निमित्तने आश्रीने कहेवामां आवे छे अने निमित्त बनेमा तुन्य छे. जेम चेतन अन्वयी छे तेम अचेतन पदार्थो पण अन्वयी छे, तेथी 'अततीति अात्मा' ए व्युत्पत्ति तेने पण लागु पडे छे. ते आत्मा पण द्रव्यक्षेत्रादि विवक्षाए छ, सर्वथा नथी. स्वरूपवडे करीने भादिष्ट करतां आत्मा छे, पररूपे आदिष्ट करतां मात्मा नथी. जे स्व अस्तित्वथी अस्ति कहेवाय अने पर नास्तित्वथी नास्ति कहेवाय तेमज स्व अवगाह क्षेत्रादि अपेक्षाए ते पर्याये अस्ति, तदन्यपणे नास्ति. एम काळात्मा पण वर्तमान काळनी विवक्षाए अस्ति अने अतीत अनागतपणे नास्ति. आ प्रमाणे अचेतन द्रव्योमा पण द्रव्यात्मापणुं समजवू. जीवद्रव्यनी संयोगवडे विवक्षा आ प्रमाणे करवी-जीव ज्यारे नारकी होय त्यारे नरकगति संयोगे करीने ते विद्यमान छे; देवगति संयोगे विद्यमान नथी. अल्पत्व बहुत्वपणे विवक्षा करतां पण स्यादस्ति स्यानास्ति कही शकाय. ते भा प्रमाणे-मनुष्यो अल्प छे, देवो ते करतां असं
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