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प्रशमरति प्रकरणम्
॥७३॥
ख्यात गुणा छ, तिर्यचो ते करतां अनंता छे. एटले तिर्यचनी संख्यापणे मनुष्यो नथी अने पोतानी संख्यापणे छे. एज प्रमाणे नामादि अनुयोग द्वारना भेदे करीने पण अस्तित्व नास्तित्वनी विचारणा करवी. निर्देश स्वामित्वादि अनेक भेदे जीव विचारवो. एटले ते स्व तवरूप सहज लक्षणे करीने अनेक भेदवाळो आत्मा जाणी शकाय छे-उपलब्ध थाय छे.
उत्पाद, व्यय ने ध्रौव्य युक्त जे पदार्थ होय तेज सत् होय छे. दृष्टांत तरीके एक आंगळी मूर्तपणे ध्रुव छ भने सरलपणे विनष्ट थाय छे त्यारे वक्रपणे उत्पन्न थाय छे अने वक्रपणे विनष्ट थाय छे त्यारे सरलपणे उत्पन्न थाय छे. ए प्रमाणे सर्व पदार्थो माटे समजवु. खरविषाणादि पदार्थों जे त्रिकाळ असत् ज छे तेनामा उत्पाद, व्यय अने धौव्यपणुं पण नथी. आ उत्पादादि त्रिपुटी उपरथी बे विकल्प उत्पन्न थाय छे. स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, तेमज त्रीजो स्यादस्ति च नास्ति च ए विकल्प पण तेना संयोगथीज उपजे छे. बीजा अर्पित अनर्पितना विशेषपणाथी चार विकल्प सूचित थाय छे. ते आ प्रमाणे-स्याद् अवक्तव्य, स्याद् अस्ति अवक्तव्य, स्याद् नास्ति अबक्तव्य अने स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्य. या प्रमाणे सप्त भंगी थाय छे. तेनुं स्वरूप सूक्ष्म छे अने बाळ जीवोने ग्राह्यमां आवी शके तेवू नथी तेथी अहीं तेनो विस्तार करवामां आव्यो नथी. विस्तारना अर्थीए आ प्रकरणनी टीका तथा सप्तभंगी तरंगिणी विगेरेथी तेनुं स्वरूप जाणी लेवू. २०२-२०३-२०४. यो ऽर्थो यस्मिन्नभूत् साम्प्रतकाले च दृश्यते तत्र । तेनोत्पादस्तस्य विगमस्तु तस्माद्विपर्यासः ॥२०५॥ साम्प्रतकाले चानागते च यो यस्य भवति सम्बन्धी । तेनाविगमस्तस्यति स नित्यस्तेन भावेन । २०६॥
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