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________________ +-- Jain Education International आठ प्रकारना छे. द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने वीर्य या तेनी आठ प्रकारनी मार्गणा छे. १६८-१६६ विवेचन—उक्त औदयिकादिक भावोवडे जीवो स्थान गत्यादिक प्राप्त करे छे. तेमां सामान्य रीते संसारमां भ्रमण करतां प्राप्त थतां सघळां स्थान अशाश्वत के त्यारे एक मोक्षस्थान ज शाश्वत छे. अत्र शंका करे छे के स्थान अने गतिमां शो तफावत छे ? तेनुं समाधान ए छे के नरकगतिमां ज जघन्य, मध्यम भने उत्कृष्ट एवां बहु स्थानो छे ते जणाववा माटे स्थान ग्रहण जूनुं क्युं छे. बळी इन्द्रियोनी समग्रता - अविकलता अथवा इन्द्रियो अने संपदा तेमज सुखदुःख आ घळां औदयिक भाववशे जे प्राप्त करे छे ते आत्माना संक्षेपथी आठ प्रकार जाणवा. ते आठ प्रकार प्रकरणकार कहे छे. द्रव्यात्मा, कपायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा ने वीर्यात्मा. एम आत्माना आठ प्रकार छे. १६८-१६६ द्रव्यादि पाठ प्रकारना श्रात्मानुं स्वरुप निरुपण करवानी इच्छाथी शास्त्रकार कहे छे: जीवाजीवानां द्रव्यात्मा सकषायिणां कषायात्मा । योगः सयोगिनां पुनरुपयोगः सर्वजीवानाम् ॥ २०० ॥ ज्ञानं सम्यग्दृष्टेर्दर्शनमथ भवति सर्वजीवानाम् । चारित्रं विरतानां तु सर्वसंसारिणां वीर्यम् ॥ २०१ ॥ भावार्थ-जीव ने अजीवनो द्रव्यात्मा, कषायवंतनो कषायात्मा, योगवाळानो योगात्मा अने सर्व जीवोनो उपयोगात्मा, सम्यग्दृष्टिनो ज्ञानात्मा सर्व जीवोनो दर्शनात्मा, चारित्रवंतनो चारित्रात्मा भने सर्व संसारी जीवोनो वीर्यात्मा. For Personal & Private Use Only ******************→→ : www.jainelibrary.org.
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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