SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥७१॥ औदयिक भावना २१ भेदो आ रीते थाय छ-नारकादि गतिना चार भेद, क्रोधादि कषायना चार भेद, स्त्री आदिक लिंगना त्रण भेद, अश्रद्धा लक्षण मिथ्यात्वनो एक भेद, अज्ञाननो एक भेद, असंयतपणानो एक भेद, असिद्धस्वनो एक भेद अने कृष्णादि छ लेश्याना छ भेद. उक्त गत्यादिक सर्वे कर्मना उदयथी प्राप्त थाय छे. अनादि पारिणामिक भाव त्रण प्रकारनो छे, जीवत्व. भव्यत्व अने अभव्यत्व. ए कंइ कर्मोदयादिकनी अपेक्षा राखता नथी. कर्मना उपशमथी थयेलो औपशमिक भाव सम्यक्त्व अने चारित्र रूप बे प्रकारनो छे. कर्मना क्षयथी थयेलो दायिक भाव नव प्रकारनो छे. केवळज्ञान, केवळदर्शन, दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि, सम्यक्त्व अने चारित्र. कर्मना क्षयोपशमथी थयेलो क्षायोपशमिक भाव अढार प्रकारनो छे. मत्यादि चार प्रकारना ज्ञान अने त्रण प्रकारना अज्ञान, चतु आदि त्रण प्रकारना दर्शन, दानादि पांच प्रकारनी लब्धियो, सम्यक्त्व, सर्वविरति अने देशविरति चारित्र. ए पांच भावोना मळीने (५३) भेदो कह्या छे. ए पांच भावोमांना बे आदिकना संयोगथी छटो सांनिपातिक या सायोगिक भाव कह्यो छे. तेवा सांयोगिक २६ भेदो थाय छे. जेमांना अविरुद्ध भेदो आदरवा योग्य छे. १९६-१६७. एभिर्भावैः स्थानं गतिमिन्द्रियसंपदः सुखं दुःखम् । संग्रामोतीत्यात्मा सोऽष्टविकल्पः समासेन || १६८॥ द्रव्यं कषाययोगावुपयोगो ज्ञानदर्शने चेति । चारित्रं वीर्य चेत्यष्टविधा मार्गणा तस्य ॥ १६६ ॥ भावार्थ-ए भाववडे करीने जीव स्थान, गति, इंद्रिय, संपदा अने सुख दुःख पामे छे. ते जीव (आत्मा) संक्षेपथी ॥७१॥ For Personal Private Use Only S w .jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy