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________________ निर्विकल्प दर्शन उपयोग. तेमां ज्ञानोपयोग ते मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्याय ने केवळज्ञान, मतिप्रज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान ए नामे आठ प्रकारनो के अने दर्शनोपयोग ते चक्षु, अचक्षु, अवधि अने केवलदर्शन ए नामे चार प्रकारनो छे. उपयोग लक्षणवाळा जीवनाज परिणति विशेष भावोने दर्शावता सता शास्त्रकार कहे छ:भावा भवन्ति जीवस्यौदायकः पारिणामिकश्चैव । औपशमिकः क्षयोत्थः क्षयोपशमजश्च पञ्चैते ॥ १९६ ।। ते चैकविंशतित्रिद्विनवाष्टादशविधाश्च विज्ञेयाः । षष्ठश्च सान्निपातिक इत्यन्यः पञ्चदशभेदः ॥ १९७॥ भावार्थ-औदयिक, पारिणामिक, औपशमिक, क्षायिक अने क्षायोपशमिक ए पांच प्रकारना भावो जीवोना होय छे. ते भावोना अनुक्रमे एकवीश, त्रण, बे, नव अने अढार भेदो जाणवा. तथा छठो सान्निपातिक भाव पंदर (१५) प्रकारनो छे. १९६-१९७. विवेचन-१ जीवे उपार्जन करेला-संचय करेला कर्मना उदयथी देव नारकादि पर्यायो (भेदो) ने उपजावनार भाव ते औदायिक; २त्रणे काळ एक सरखो बदलाइ न शके तेवो टकी रहेनार जीवत्व, भव्यत्व अने अभव्यत्वादिरूप भाव ते पारिणामिक; ३ विपाकथी के प्रदेशथी बने रीते मोहनीय कर्मना उदयनो अभाव ते सम्यक्त्व, चारित्ररूप औपशमिक भावः ४ उक्त कर्मना चयोपशमथी निपजेलो (प्रदेश उदयवाळो ) सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्रादिरूप भाव ते बायोपशमिक अने ५ उक्त कर्मना क्षयथी निपजेलो भाव ते क्षायिक सम्यक्त्वादिरूप समजवो. ए रीते जीवना पांच भाव कह्या छे. Jain Education in Den For Personal Private Use Only V Ivjainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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