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________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥ ७० ॥ ते कहे छ. स्थितिथी, अवगाहनाथी, ज्ञानथी अने दर्शनथी. तेमां स्थितिथी अनादि संसारमा पर्यटन करतां अनंता स्थिति पर्यायो थयेला छे. अवगाहथी असंख्यात प्रदेशावगाह छतां हीन अधिक के समप्रदेशना भेदे करीने अवगाह पण बहु प्रकारनो थयेलो छे. तेमज ज्ञानथी अने दर्शनथी पण अनंत भेद कह्या छ; एकेक नारकादि भेदना पण यथासंभव अनंत भेद थाय छे. १९३. हवे शास्त्रकार जीवनां लक्षण कहेवानी इच्छाथी कहे छे:सामान्यं खलु लक्षणमुपयोगो भवति सर्व जीवानाम् । साकारोऽनाकारश्च सोऽष्टभेदश्चतुर्धा च ॥१६४॥ ज्ञानाज्ञाने पञ्चत्रिविकल्पे सोऽष्टधा तु साकारः । चतुरचतुरवधिकेवलहग्विषयस्त्वनाकारः ॥ १६५ ॥ भावार्थ-सर्व जीवोनु सामान्य लक्षण निश्चे करीने उपयोग छे. ए उपयोग साकार अने अनाकार (ज्ञानदर्शन ) रूप छे. तेमा साकारोपयोग आठ प्रकारे अने अनाकारोपयोग चार प्रकारे छे. पांच ज्ञान ( मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव तथा केवळ) अने त्रण अज्ञान (मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान अने विभंगज्ञान ) ए आठ प्रकारे साकारोपयोग छे. * तथा चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन अने केवलदर्शन ए चार प्रकारे अनाकार उपयोग छे. १९४-१६५. विवेचन-सर्व जीवोनु सामान्य लक्षण खरेखर ज्ञान दर्शन उपयोगरूप चेतना छे. ते उपयोगने विशेषे स्पष्ट करी बतावे छे. एक साकार एटले विकल्पवाळो उपयोग अर्थात् सविकल्प ज्ञानोपयोग अने बीजो अनाकार सामान्य ग्रहणरुप minarane a w ॥७०॥ Jan Education For Personal Private Lise Oy eGll Sainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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