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________________ हवे शास्त्रकार संसार भावना पाश्री स्वरूप निवेदन करे छ:माता भूत्वा दुहिता भगिनी भार्या च भवति संसारे। व्रजति सुतः पितृतां भ्रातृतां पुनः शत्रुतां चैव ॥१६॥ भावार्थ-माता थइने पुत्री, व्हेन अने भार्या श्रा संसारने विषे थाय छे, तेमज पुत्र थइने पिता, भाइ अने शत्रु पण थाय छे. १५६. विवेचन-संसारमा परिभ्रमण करतां प्राणीओनी जे एक वखते माता होय छे तेज पाछी कर्म परवशताथी पुत्री, भगिनी अने भार्या पण थाय छे तथा एक वखते जे पुत्र थयो होय तेज पुनः कर्मयोगे पिता भाइ अने शत्रु पण थवा पामे छे. तेथी आ चराचर जगतमा सर्वे जीवो अरसपरस पितापणे, मातापणे, पुत्रपणे अने शत्रुपणे पण अनेकधा संबंधमा भावी गयेला जाणवा. आ भावनाना सतत् अभ्यासयोगे अमुक उपर रागबुद्धि अने बीजानी उपर द्वेषबुद्धि रहेती होय ते शान्त थइ जवा पामे छे. १५६. हवे शास्त्रकार आश्रव भावनानुं स्वरूप निवेदन करता सता कहे छ:मिथ्यादृष्टिरविरतःप्रमादवान् यः कषायदण्डरुचिः। तस्य तथास्रवकर्मणि यतेत तन्निग्रहे तस्मात् ॥१५७।। भावार्थ-जे प्राणी मिथ्यादृष्टि, अविरति, प्रमादी अने कषाय तथा योगने विषे रुचिवंत छ तेनामा कर्मनो प्रवाह चाल्यो आवे छे, ते माटे तेनो निरोध करवा यत्न करवो. १५७. Jain Education international For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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