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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम ।। ५० ।। Jain Education Int →>*<***@· · • →→**+*@**********@*** वाळु स्निग्ध क्षेत्र होय तो सुखे जरी शके तेटला पूरतुंज वापरकुं, अने काश्मीर जेवुं ठंडु क्षेत्र होय तो त्यां सुखे जरे तेबुं तेलुं वापर. वळी पोतानी जठराग्निना प्रमाणमांज सुखे पचे तेज ने तेटलोज खोराक लेवो पण वधारे नहि. तेमज पोतानी प्रकृतिने माफक आवे एवो स्निग्ध, रुक्ष के मध्यमसर आहार ग्रहण करवो. वळी खावापीवानी चीज केवी हलकी के मारे छे ? अने स्वशरीर रोगी छे के नीरोगी छे ? बळिष्ट छे के निर्बळ छे ? ते बधुं लक्षमां राखीने श्रन्नादिक वामां आवे तो पछी औषध भेषज लेवानुं कथं प्रयोजन रहेतुं ज नथी. १३७ अहीं कोई आशंका करे के आहार शय्या अने वस्त्रपात्रादिक ग्रहण करतां छतां साधु अकिंचन अपरिग्रही केम कहेवाय १ तेनुं शास्त्रकार समाधान करे छे: पिण्डः शय्या वस्त्रैषणादि पात्रैषणादि यच्चान्यत् । कल्पयाकल्प्यं सद्धर्मदे हरक्षानिमित्तोक्तम् ॥ १३८ ॥ कल्पयाकल्प्यविधिज्ञः संविग्नसहायको विनीतात्मा । दोषमलिनेऽपि लोके प्रविहरति मुनिर्निरुपलेपः ॥ १३९॥ यद्वत्पङ्काधारमपि पङ्कजं नोपलिप्यते तेन । धर्मोपकरणधृतवपुरपि साधुरलेपकस्तद्वत् ॥ १४० ॥ भावार्थ - आहार, शय्या, वस्त्र, अने पात्र एषणा विगेरे जे कंइ कल्प्याकल्प्य कीं छे ते सर्व चारित्रदेहनी रचाने निमित्ते छे. कल्प्याकल्प्य विधिनो जाण, गीतार्थनिश्रित अने विनयवंत मुनि, दोषथी मलीन लोकमां पण लेपरहित व छे. जेम पंकनी उपर रहेलं कमळ पंकथी लेपातुं नथी तेम धर्मोपकरणवडे शरीरने धारण करनार साधु पण तेनाथी लपाता नथी. १३८-१३९-१४०. For Personal & Private Use Only ।। ५० ।। v.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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