SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् -॥४७॥ मा रीते लोकचिन्ताथी दूर रहेनारने पोतार्नु भरण पोषण विगेरे शी रीते थइ शके १ तेनो ग्रंथकार खुलासो करे छे. या चेह लोकवार्ता शरीरवार्ता तपस्विनां या च । सद्धर्मचरणवार्तानिमित्तकं तद्वयमपीष्टम् ॥ १३०॥ भावार्थ-साधुजनोने चारित्रना निर्वाहनिमित्तरूप जे लोकवार्ता अने शरीरवार्ता होय ते इष्ट छे. १३०. विवेचन-जेमा पोताना संयमनिर्वाह निमित्ते भरणपोषणनो हेतु रहेलो छे, तेमज बीजा साधुजनोनी पण शरीरस्थितिनो हेतु रहेलो छे एवी-एटला पूरति लोकवार्ता अने शरीरवार्ता ए बने संबंधी लच साधुजनोने कर्तव्य छे. द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावने अनुसरी जेम संयमनिर्वाह सुखे थइ शके, तेम तेमणे प्रवर्तवार्नु होय छे. निर्दोष भने प्रासुक माहार पाणी वस्त्र पात्रादिकनी प्राप्ति थाय तेवी गवेषणा तेमणे करवानी छे. एवो दुष्कर मुनिमार्ग लोकोने उपदेशद्वारा निवेदन करवो जोइए, भने गृहस्थोए निजकुटुंव अर्थे तैयार करेला निर्दोष आहार पाणी प्रमुख संयमधारी साधुमहात्माओने निःस्वार्थपणे बहुमानपूर्वक भापवा-अपाववाथी जे अतुल लाभ थाय छे ते समजाववो जोइए. पा रीते उभयर्नु हित सधाय छे. साधुजनोने दमादिक दशविध धर्मनी रक्षा अने पुष्टि थाय छे, यावत् मूळगुणरूप पांच महाव्रतोनुं भने उत्तरगुणरूप पिंडविशुद्धि प्रमुखनी रक्षापूर्वक वृद्धि थया करे छे भने एवाज शुद्ध धर्ममार्गनी देशनादानादिकपडे अनेक मव्य गृहस्थ जनोनुं पण कन्याण सहेजे सधाय छे. ए रीते सद्धर्माचरण निमित्ते शरीरस्थिति संरक्षवा माटे शास्त्रसंमत लोकवार्ता-लोकचर्या सेववी उचित छे. १३० वळी लोकवार्ता] अन्वेषण करवामां एक बीजुं कारण पण छे ते ग्रंथकार बतावे छे: ॥४७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy