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________________ नथी, केमके कोइ वखते इष्ट एवा ते पण भनिष्ट थइ पडे छे. देवेन्द्रनुं सुख प्रकृष्ट होय छे ते सुख पण तेनी उपरना इन्द्रने अधिक सुखी देखी अधिक सुखनी इच्छाथी भने च्यवननी चिन्ताथी दुःखथी भरपूर ज छे. अथवा सर्व देवोमां उत्तम होवाथी अनुत्तर विमानवासी जे देवराज तेने जे सुख छे ते पण काळ जतां क्षय पामे एवं छे अने त्यांथी फरी पाछु मनुष्य स्त्रीना गर्भावासमां भाववा संबंधी दुःखद् चिंतन करतां तेने पूर्ण सुख तो नथी ज. मतलब के प्रशमसुखमाज जेनी स्थिर चित्तवृत्ति छ तेने जे सहज स्वाभाविक सुखनी प्राप्ति छे ते राजराजेश्वर एवा चक्रवर्ती प्रमुखने तेमज सर्व देवोमा शिरोमणि इन्द्रोने के अनुत्तर विमानवासी देवोने पण नथी. तेथी प्रशमजनित वास्तविक सुखज आत्मार्थी जनोए मेळवबा योग्य छे. १२८. प्रशमजनित सुखनेज पुनः शास्त्रकार स्पष्ट करी बतावे छे. संत्यज्य लोकचिन्तामात्मपरिज्ञानचिन्तनेऽभिरतः जितलोभरोषमदनः सुखमास्ते निर्जरः साधुः॥१२६॥ भावार्थ-लोकचिंताने समग्र रीते त्यजीने आत्मज्ञान-अध्यात्मचिंतामा लयलीन, लोभ रोष भने कामक्रीडा वर्जीत एवा समपरिणामी साधु सदा समाधिरसमा झीले छे. १२९. विवेचन-वजन अने परजन संबंधी दुःख दारिद्र के दुर्गतिनी चिंता त्यजीने, आ अमृल्य मानवदेहादिक उत्तम सामग्री पामी हवे पछी जेम मा दुःखमय संसारमा परिभ्रमण करतुं न पडे तेम मारे अवश्य प्रयत्न करवो जरुरनो के, ए रीते निज हितचिंतनमा उजमाळ थइ जे पारकी पंचात मुकीने स्वहित साधनमा सावधानता धारी रहे छे अने जेणे विषय कषायने वश करी लीधा छे एवा साधुजनो सर्व प्रकारना ताप रहित थइ सहज आनंदमां झीले छे. १२९. For Personal Private Use Only wranw.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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