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साधु
प्रति
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॥ अथ पाक्षिकसूत्रं ॥ ॥ तिबंकरे य तिजे । अतिबसिहे य तिबसिझे य ॥ सिझे य जिणे रिसि । महरिसि नाणं
च वंदामि ॥१॥ अर्थः-(तित्थंकरे तित्थे के ) अतीत काल अनागत काल अने वर्तमान कालनेविषे जे तीर्थंकरोयें पोतानुं शासन प्रव व्युं बे, अने तेमनी पड़ी जेन सिह थया ने, तेन, (अतित्य सिक्ष्य के ) तीर्थ प्रवर्या पेहेलां जेन सिह थया ले. ते एटले जेम मरुदेवा माताजी तीर्थ प्रवर्या पेहेलां मोहें गया ले, तथा श्रीसुविधिनाथजीनी वच्चे ज्यारे शासननो विच्छेद थयो हतो सारे जेन सि-पदने पाम्या डे तेनने, तथा ( तित्यसिक्ष्य के ) जैन तीर्थंकर महाराज, शासन प्रवर्त्ततुं होय ते समये सिह थया होय तेनने, तथा (सिक्ष्य के ) बाकीना तेर लेदोथी जेल सिह थया ले तेनने, तथा ( जिणे के ) संसारमा रहेला सामान्य केवलीने, तथा (रिसि के०) सामान्य प्रकारना साधुनने, तथा (महरिसि के) मोटा लब्धिवंत मुनिराजोने, तथा ( नाणं के० ) पांच प्रकारना छानने ( च के0 ) वली (वंदामि के० ) हुं वांदु छ. ॥१॥ ॥ जे इमं गुणरयणसायर । मविराहिकण तिल संसारे ॥ ते मंगलं करित्ता । अहमवि
आराहणानिमुहो ॥२॥ अर्थः-(जे के०) जे मुनिराजो (गुणरयणसायरं के) मूलगुण अने नत्तरगुणरूपी रनोना समुह सरखा, एवा (श्मं के) आ चारित्रने (अविराहिमण के0) अविराधिने एटले विराध्याविना, (संसारे के०) आ संसाररूपी समुश्थी (तिम के ) तरीने पारने पाम्या डे, (ते के ) ते मुनिराजो, ( मंगलं करित्ता के0 ) मने मोक्षरूपी मंगलना करनारा थान. (अहमवि के0 ) हुं पण, (आराहणालिमुहा के० ) मोक्षरूपी मंगलनुं आराधन करवाने अनिमुख एटले सन्मुख अथवा तत्पर थयो छु. ॥३॥ ॥ मम मंगलमरिहंता । सिश साढू सुयं च धम्मो य ॥ खंति गुत्ति मुत्ति । अजव य म
हवं चेव ॥३॥
॥६ए
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