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________________ प्रति ॥६॥ गमणे निगमणे के0) आववा जवामां तथा (गणेनिसिअणेतुअट्टे के0) स्थानमते बेरवाना फरवाना संबंधमां मने जे को || सूत्र ग्यो होय, ते हुं पमिकमुं हूं. आवश्यक जयकाल व्याक्षिप्त चित्तपणे पमिकमणो कीधो, पमिकमाणामांहि घ आवी, बेठां पमिकमणुं कीg, दिवस प्रतें चार वार सद्याय, सात वार चैसवंदन न कीधां, पमिलेहणा आधी पानी जणावी, अस्तो व्यस्त कीधी, आर्च रोड ध्यान ध्यायां, धर्मध्यान शुल्लध्यान ध्यायां नहीं, गोचरी गयां बेतालीश दोष उपजता चिंतव्या नहि, बती शक्तिए पर्व तिथे नपवासादिक कीयो नदि, नपासरा देहरामांहि पेखतां निसिही नीसरतां आवस्यही कहेवी शिसारी, श्वामिडादिक दशधिध चक्रकाल समाचारी साचवी नहि, गुरु तणो वचन तहत्ति करी पमिवज्यो नहि, अपराध आव्यां मिहामि उक्कम दीधा नहि, स्यानके रहेतां हरियकाय बीयकाय, कीमी तणां नगरां शोध्यां नही, उघो मुदपति चोलपट्टो संघट्या, स्त्री तीयेचतणा संघट्ट अनंतर परंपर हवा, वमा प्रतें पसा करी, लहुमां प्रतें श्वाकार श्सादिक विनय साचव्यो नदि, एवंकारे साधुताणे धर्मे एकसो चाळीस अतिचारमांहें साधु समाचारी विषयो अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवसमांहे सूक्ष्म यादर जाणतां अजाणतां हुन होय, ते सविहु मन वचन कायायें करी मिलामि उक्कम. ॥ ए॥ ते एकसो चाळीस अतिचार नीचे मुजब जे. ॥ वयसमणधम्मसंयम । वेयावच्चं चवनगुत्ती ॥ नाणातियं तव कोहनिग्गहाई चरणमेयं ॥१॥ अर्थः-(वय के0) पांच महाव्रतो, ( समणधम्म के० ) श्रमणधर्मः, एटले दश प्रकारनो यतिधर्म, ( संयम के0 ) सत्तर प्रकारनो संयम, (वेयावच्चं के) दश प्रकारनुं वैयावल, (च के0 ) अने (बंजगुत्ती के0) नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी गुप्तिa (नाणातियं के) ज्ञान आदिक त्रण ( तव के0 ) बार प्रकारनो तप तथा ( कोहनिग्गहाई के0) क्रोधादिक चार नो निग्रह ( एयं के ) एवी रीते ( चरणं के0) चरणसित्तेरी जाणवी. ॥पिंमविसोही सम ।नावण पमिमाय इंदियनिरोहो॥पमिलेहणगुत्तीन अन्निग्गहो चेव करणंतु ।। अर्थः-(पिमविसोह। के0 ) चार प्रकारन। मिविशुद्धि, ( समई के0) पांच समिति, (नावण के ) बार नवना ( प. ॥६० मिमाय के) बार प्रकारनी पतिमा, (इंदियनिराहो के० ) पांचे इंडियोनो निरोध, (पमिलेहण के०) पच्चीस प्रकारनी पमिलेहणा (गुत्तिन के0) त्रगुप्त (चेव के०) वली (अनिग्गहो के०) चार अजिग्रह (करणंतु के०) ए करण सित्तेरी जे. For Personal & Private Use Only www.jabrary.org Jain Educ Internal
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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