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________________ साधु प्रति ॥६॥ बए व्रत विषश्न अनेरो जे कोई अतिचार पक्ष दिवस मांहिं मूइम बादर जाणतां अजाणता हुन होय ते सविडं मन वचन || काया करी मिचामि कम ॥ अर्थः ॥ कायपट्के । गामतणे पइसारे नीसारे पग पमिलेहवा विसार्या, माटी मीत खमी धावमी अरणेटो, पाषाणतणी चातली उपर पग आव्यो, अप्पकाय वाघारी फूसणा हुवा, विहरवा गया, ऊलखो हाल्यो लोटो ढोल्यो, काचा पाणीतणाबां. टा लाग्या, तेनकाय वीज दीवातही नही हु, वानकाय, नघामें मुखें वोल्या, महावाय वाजतां कपमा कांबली तणा - मा साचव्या नहीं, फूंक दीधी ॥ वनस्पतिकाय, नीलफूल सेवाल थुम फूम फल फूल वृद्ध शाखा प्रशाखातगा। संघट्टपरंपर निरंतर हुवा ॥ त्रसकाय, बेरिंडी तेरिंडी चनरिंडी पंचेंडी काग बग नमाव्या ढोर त्रासव्या, बालक बीहाव्यां षट्काय विषय अनेरो जे कोइ अतिचार पद दिवस मांहि सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुन होय ते सवि हूं मन वचन कायायें करीमिबामि ॥७॥ ॥अकल्पनीय सहा वस्त्र पात्र पिंक परिजोगव्यो, सिकातरतणो पिंक परिजोगव्यो, उपयोग कीधा पाखे विहयों, धात्री दोष, त्रस बीजसंसक्त पूर्वकर्म पश्चात्कर्म नाम उत्पादना दोष चितव्या नहीं, गृहस्थतणो नाजन नांज्यो, फोड्यो, वली पालो आप्यो नहीं, मृतां संथारिया नत्तरपट्टा टलतो अधिको नपगरण वाक्यों देशातः स्नान मुखें नीनो हाथ लगाड्यो, सर्वतः स्नानतणी वांबा कीधी, शरीरतणो मल फेज्यो, केश रोम नख समार्या, अनेरी कांश राढा विभुपा कीघो, अकल्पनीप पिमादि विषश्च अनेरो जे को अतिचार पद दिवस मांहिं सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणतां हुन होय ते सवि हूं मन वचन काया कर मिलामि कम् ॥ ७॥ ॥ श्रावस्सयसचाए, पमिलेहणधाण निरक अन्नत्त । आगमणे नीगमणे । गणे निसी अणे तु अट्टे ॥१॥ अर्थः-(आवस्सय के0) आवश्यक एटले प्रतिक्रमणना संबंधमां, (सहाए के0 ) स्वाध्याये, एटले स्वाध्यायना संबंधमां, तथा (पमिलेक्षण के ) प्रतिलेखन, एटले पमिलेहण करतां थकां, तया (डाण के0) ध्यान, एटले ध्याननासंबंधमां, तथा (जिरुख के ) जिदा, एटले गोचरीना संबंधमां, तथा (अजत के०) उपवासादिक तपस्याना संबंधमां, तथा (आ Jalti Educe international For Personal & Private Use Only www.janorary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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