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________________ साधु प्रति अर्थः ॥ असजाए सजाश्रं, सजाए न सजाइयं, तस्स मिलामि उक्कम ॥ अर्थः-(असकाए के) अस्वाध्याये, एटले अस्वाध्याय वखते, अर्थात् श्रुतमा वर्ण वेला अनध्याय समये (सहा. अं के ) स्वाध्यायितं, एटले स्वाध्याय करेलो होय, अर्यात् ते अनध्याय वखते श्रुतसंबंधि पठनपाठन आदिकनी क्रिया करवावमे करीने, एवी रीते कोइ पण प्रकारनी श्रुतसंबंधि आशातना करवायी मने जे कोई कर्मोनो बंध पम्वारूप अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हुं पमिक, छ. वली हुं शुं पमिकमुं हुं तो के, (सकाए के) स्वाध्याये, एटले स्वध्याय समये, अर्थात् श्रुतमा वर्ण वेला स्वाध्याय वखते ( न सजाइयं के ) न स्वाध्यायितं, एटले स्वाध्याय न करेलो होय, अर्थात् ते स्वाध्याय समये श्रुतसंबंधि पठनपाठन आदिकनी क्रिया न करवावमे करीने, अने एवी रीते कोइ पण प्रकारनी श्रुतसंबंघि आशातना करवाथी मने कर्मोनो बंध थवारूप जे कोइ अतिचार लागेलो होय, (तस्स के० ) तस्य, एटले ते अतिचारसंबंधि ( मिलामि दुक के ) मिथ्या मे पुष्कृतं, एटले मारूं जे दुष्कृत, ते मिथ्या थान. एवी रीते आ मूत्रमा एकथी मांझीने तेंत्रीस मुधिनां स्थानकोसंबंधि अतिचारानुं प्रतिक्रमण कहेलुं . परंतु तेथी बीजां अधिकस्थानो पण जे. जेमके चोंत्रीस प्रकारना श्री अरिहंत जगवानना अतिशयो, पांत्रीस प्रकारनां श्रीअरिहंत नगवाननी वाणीना गुणो, बत्रीस प्रकारना श्री नत्तराध्ययन नामना मूत्रना अध्ययनो, अथवा बत्रीस प्रकारना श्री आचार्यजी महाराजना गुणो वर्णवेला ले, एवी रीते नेक शततार अने शतत्नीपग् नत्र पर्यंत स्थानको कहेलां बे; तेम तेलयी पण अधिक श्रोसमवायांग नामना मूत्रमा कथन करेला बे. तेमज एकयी मामीने बेक दश मुधिनां अनेक प्रकारनां स्थानको स्थानांग नामना सूत्रमा वर्णवेलां बे. परंतु ते सघलां स्थानकोसंबंधि अतिचारोना प्रतिक्रमण नो पाठ हमेशां बंन्ने वखत यशके नही, तेटला माटे अहीं कह्यां नथी. फक्त 'केवलि महाराजे प्रइतेला धर्मन! आशातनावमे करीने' ए पद कहेबावके करीने सर्व स्थानोनुं ग्रहण करेलुं बे, एम जणाय बे, केमके ते सघलां स्यानको केवली महाराजनां प्रझोला ले. एवीरीते पूर्वोक्त रीतिथी अतिचारसंबंधि शुदि कर्यावाद हवे श्री अरिहंत प्रभुने नमस्कार करवा पूर्वक श्रुतन वर्णन करे . ॥णमो चनवासाए तित्यराण, नसलाइ महावीर पज्जवसाणाणं ।। ॥५३। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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