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साधु
सूत्र
प्रति
अर्थः
एवो कोइपण जातनो मने जो अतिचार लागेलो होय, तो ते अतिचारने हुं पमिकमुंडूं. वली हुं शुं पमिकमुं छु? तो के, (वायणारिअस के0 ) वाचनाचार्यस्य, एटले वाचनाचार्यनी, अर्थात् पोताने अभ्यास करावनारा गुरुआदिकनी (आसायणाए के) आशातनया, एटले सातना करवावके करीने, अर्थात् वाचनाचार्यजी महाराजनी कोपण प्रकारनी अवहीलना करवायके करीने मने जे कोई अतिचार कर्मोना बंधपम्वारूप लागेलो होय, ते अतिचारने हं पमिक, छ. वली हुं शुं पमिकमुं ? तो के,
॥जंवाई, वज्ञामेलिनं, हीणस्करिअं, अच्चरकरिअं, पयहीणं, विशयहीणं॥ अर्थः-(जं के0 ) यत्, एटले जे, अर्थात् जे कोइ मूत्र, (वाई के०) व्यावई, एटले नुलटपालट करेलुं होय, अर्थात् जे कोई मूत्रना जागने अगामीनू पाउल करेल होय, अने पाउलनु अगामी करेल होय, अने एवीरीते श्रुतसंबंधि आसातना करवायके करीने मने जे कोइ अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हुँ पमिकमुं हूं. वली हुं शुं पमिकमु छ! तो के, (वचामेलियं के0) व्यानेमित, एटले श्रुतना कोइ पण नागने च्यामित कर्यु होय, अर्थात् श्रुतना कोइ पण नागने बे वार च. थवा त्रण वार बोलीने, एवीरीते श्रुतसंबंधि आमातना करवावके करीने मने जे को अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हुं पमिकमुं छ. बली हुं शुं पमिकमु छ! तो के, (हीणरकरि के०) हीनादर, एटले श्रुतना कोई पण नागनो पाठ करतां थकां अकरोने तजी दीधा होय, अने तेम करवावके करीने श्रुतसंबंधि जे को आसातना में करेली होय, अने तेयी जे कोइ अतिचार मने लागेलो होय, ते अतिचारने हुं पमिकमुटुं. वली हुं शुं पमिकमुं हुं. तो के (अच्चरकरिअं के ) असदरं, एटले अधिक अक्रोवालु, अर्थात् कोइ पण श्रुतनो पाठ करतां थकां तेमां अधिका अदरोनो पाठ करेलो होय, अने तेम करीने एवी रीते श्रुतनी आशातना करवावके करीने मजे जे को अतिचार लागेलो होय, ते अतिचारने हुं पमिकमुं हूं. वली हुं शुं पमिक मुं छु? तो के, (पयहीणं के ) पदहीनं, एटले पदवमे करीने रहित एवो कोइ पण श्रुतनो पाउ करेलो होय, अर्थात् श्रुतनो पाठ करतांयकां ते संबंधि कोइ पण पदने तजी दीवेलु होय, अने तेम करवावमे करीने एवी रीते जे कोई अतिचार मने लागेलो होय, ते अतिचारने हुं पमिकमुटुं. बली हुं शुं पमिक, ढुं? तो के, (विणयहीणं के) विनयहीनं, एटले विनयबके करीने रहित एवो श्रुतनो पाठ कर्यो होय, अर्यात् कोइ पण श्रुतनो पाठ आदिक करतांयकां, ते सं
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