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________________ साधु ॥ य ले. अने जे जे अंशे रागष आत्मामाथी छुटतो जशे, ते ते अंशे आत्मा स्थिरता अनुजवतो जशे, अने ते एटले मूधी के प्रति० पोते अगान को दिवसे नदि अनुनवेली शांति पोतामांज अनुनवशे. एवी शांति अने स्थिरता अनु नवनो आत्नाज अंत. रात्मा जणाय ले. अने ए अंतरात्मा बहारना विषयोयी विमुख यश, परमात्नानी सन्मुख यह तेनां दर्शन करवाने योग्य थाय ले. माटे जेने परमात्माना दर्शननी के परमात्मानी प्राप्तिनी जीझासा होय तेने आ नपाय, कुंवो, के रहस्य कामे लगा. '३३३॥ मवानी हुं प्रार्थना करुं छु. अध्यात्म रसिक श्रीमद् देवचंजी पण आपणने कहे ले के प्रीति अनादिनी परयकी, जे तोके हो, ते जो एह परम पुरुषयी रागता, एकत्वता हो दाखगुणगेह. ॥ ६ ॥ जावार्थः-प्रन्नुमाथे प्रीति केम याय! तेनु नत्तर आपतां आचार्य महाराज आपणने कदे ले के अनादि काळ्यी शरीर, मन, वाणी अने तेना विषयो ए परवस्तु , माटे एनी साथे तमे मीत तोमो, एटले परमात्मानी साये तमारी प्रीति य. वाने तमारामां योग्यता आवशे. एम योग्य यश पड़ी परमपुरुष परमात्मानी साथे जो राग करशो तो गुणना घररूप तमे पोतेज परमात्मा यइ जशो. ना. क. ॥ हवे मूढ पुरुष तथा ज्ञानी पुरुषनी दृष्टि केवो होय छे ते देखामे दे. संयोजयति देहेन चिदात्मानं विमूढधीः । बहिरात्मा ततो ज्ञानी पृथक् पश्यति देदिनम् ॥ ११ ॥ अर्थः-अति मूहबुभिवाळो पुरुष आ ज्ञानमय अत्माने बाह्यदृष्टिवालो होवाथी देहज एम जुए ले. अने हानी पुरुप आ सकल देहमां व्यापी रहेला चित् अने ज्ञानमय आत्माने देहयी जुदो बे एम देखे डे. ॥ ११ ॥ ॥ हवे बहिरात्मा देहनेज आत्मा पान ने तेनुं कारण कहे . ॥ अक्षारैर विश्रांतः स्वतत्त्वविमुखैर्नृशम् । व्यावृतो बहिरात्मा यो वपुरात्मेति मन्यते ॥१२ ।। अर्थः-पोताना आत्मतत्वथी उलटी दिशामाज विशेषे करी जोनारां एवां इंडियोना हारथी घेराएलो आ बहिरात्मा || ॥३३३ शरीरनेज आत्मा ने एम माने ॥ १५ ॥ ॥ पनी तेज शरीरने मनुष्यादि पर्यायरूप गणे बे.॥ dain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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