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________________ साधु प्रति ॥३१२॥ रि हर्ष पार ॥ तम शिक्षा जावना, जणुं सुणो नर नार ॥ ३ ॥ रे जिव सुा तुं बापमा, दिये विमासी जोय ॥ आप स्वारथी सहु मन्युं ताहारुं नहि जग कोय ॥ ७ ॥ धर्म विना सुरा जीवमा, तुं जम्यो जब अनंत ॥ मूढपणे जब तें किया, इम बोले जगवंत ॥ ५ ॥ लाख चोराशि योनिमां, फरी लीयो अवतार ॥ एकेकी योनि वली, अनंत अनंती वार ॥ ६ ॥ चउद राज परमाणु, सूई अग्रजाय ठाम ॥ कर्मवशें जिन तुं जम्यो, मूरख चेतन नाम || 9 || निगोद सूक्ष्म बादरें, पुल - नंत अपार ॥ एतो काल तुं तिहां रह्यो, हवे कर हैये विचार ॥ ८ ॥ श्वास श्वासा एकमां, मरण सतर अध कधि ॥ सूदम निगोदमांदे वली, ए जिन वचन प्रसीध ॥ ए ॥ नस्य विगलेंडि तिर्यगति, जब कीया बहु देव ॥ जुवनपति व्यंतर ज्योतिषी, तर विमानक देव ॥ १० ॥ इम जमतां जमतां लियो, मनु जनम अवतार ॥ मिथ्यात्वपणें जब निगम्या, काज न सोध लगार ॥ ११ ॥ जगमां जीव बे बहु, एकथं अनंती वार || विविधप्रकार सगपण कियां, हैया साथ विचार ॥ १२ ॥ तो कुणप पारकुं, कुण बेरी कुण मित्त ॥ राग देष टालो करी, कर समता इक चित्त ॥ १३ ॥ पूर्वं कोमिने नखें, यानी गुरु अपार ॥ उत्पत्ति कहि जिनं ताहरी, कहेतां नावे पार ॥ १४ ॥ पुत्र पिता पण अवतरे, पिता पुत्र पण जोय ॥ माता सगपण नारि मली, नारी माता होय ॥ १५ ॥ सूतो सुपन जंजालमां, पाम्यो जाणे राज | जब जाग्यो तब एकलो, राजन सीके काज ॥ १६ ॥ तिम ए कुटुंब सहू मन्युं खोदी माया जाल ॥ प्रायू पहोंचे आपणे, खिण याये विसराल || ११|| सोदो लेया जा मिले, जिहां जोमी सहि हाट । आाथ सारु विवसाय करी, फरी चाल्या निज बाट ॥ १७ ॥ तिम जमतो सत्रि मख्या, कुटुंब जोमी जो हाट || पुण्य पाप विवसाय करी, जो उतरीयें घाट ॥ १७ ॥ इम कुटुंब मिल्यु कारिमुं माय नेवली ताय ॥ बंधू जगिनी जारजा, को केहनी न कहाय ॥ २० ॥ नव नव नाटक तुंबली, नाच्यो करि बहु रूप ॥ नाटक एकथं नाचियो, जो छुटे जब कूप ॥ २१ ॥ उत्तम कुल नर जब लही, पामि धर्म जिनराय ॥ प्रमाद मूकी कीजिये, खिण लाखीणो जाय ॥ २२ ॥ जिसुं कीजें तिसुं पाइयें करे तैसा फल जोय ॥ सुख दुख प्राप कमाइयें, दोष न दीजें कोय ॥ २३ ॥ दोष दीजें निज कर्मने, जिया नवि कीधो धर्म ॥ धर्म विना सु ख नवि मले, ए जिन शासन सर्म ॥ २४ ॥ वात्री कूरी कोदरी, तो क्युं लुणीयें शाल ॥ पुण्यविना सवि जीवमा, आशा - ल पंपाल ॥ २५ ॥ य पहोती आतमा, कोइ नवि राखण दार ॥ इं चंद जिनवर वली, गया सवी निरधार ॥ २६ ॥ Jain Educon International For Personal & Private Use Only सूत्र अर्थः ॥३१॥ www.jairbrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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