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साधु
मंति
॥३१९॥
ल नया प्रगट जोवो || हो प्री० || ६ || इविध सुमता बहु समजावे. गुण अवगुण कही सहु सरसावे, मुणि चिदानंद निज घर आवे || हो मी० ॥ ७ ॥
॥ राग सारंग अथवा आशावरी ॥
० ॥ ४ ॥
॥ अत्र हम अमर जये न मरेंगे ॥ ० ॥ या कारन मिथ्यात दीयो तज, क्युं कर देह धरेंगे ॥ ० ॥ १ ॥ राग दोस जग बंध करत है, इनको नास करेंगे ॥ मस्यो अनंत कालतें मानी, सो हम काल हरेंगे ॥ ] ॥ २ ॥ देह विनासी हूं - नासी, अपनी गति करेंगे || नासी जासी हम थिर वासी, चोखे व्है निखरेंगे ॥ ० ॥ ३ ॥ मध्यो अनंत वार बिन समज्यो, अब सुख दुःख विसरेंगे || आनंदघन निपट निकट अक्षर दो, नहीं समरे सो मरेंगे ॥ ॥ राग आशावरी ॥ ॥ याशा औरनकी क्या कीजे, स्थान सुधारस पीजें ॥ आशा ० ॥ ए की ॥ जटके दारदार लोकनके, कूकर - शाधारी ॥ तम अनुजब रसके रसीया, उत्तरे न कबहुं खुमारी || आशा ० || १ || आशा दासीके जे जाये, ते जन जग के दासा ॥ आशा दासी करे जे नायक, लायक अनुभव प्यासा || आशा || १ || मनसा ध्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अनि पर जाली ॥ तन जाठी अवटा पिये कस, जागे अनुज बाली ० ॥ ३ ॥ अगम पीयाला पीयो मत वाला, चिन्ही अध्या तम वासा ॥ आनंदघन चेतन व्है खेले देखे लोक तमासा || आशा ॥ ४ ॥ इति पदं ॥ ॥ इति वैराग्योपदेशक पदानि समाप्तानि ॥
॥ अथ श्री आत्मशिक्षाजावना. ॥
॥ दोहा ॥ -- श्री जिनवर मुखवासिनी, जगमें ज्योति प्रकाश || पदमासन परमेश्वरी, पूरे वंदितः खश ॥ १ ॥ ब्रह्मसुता गुण यागली, कनक कर्मफलु सार ॥ वीणा पुस्तक धारिणी, तुं त्रिभुवन जयकार ॥ २ ॥ श्रीसरसति जिन पाय नमी, मन
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सूत्र
अर्थः
॥ ३११८
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