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________________ साधु अर्थः ॥३१॥ तस जाण ॥पा विध जणी वैद सुणाव, पण अकस कला नवि पवि ॥ कया॥१॥ पत्रीस प्रकारें रसोई, मुख गणतां तृप्ति न हो ॥ शिशु नाम नाही तस लेवे, रस स्वादत मुख अति लेवे ॥ कय० ॥२॥ बंदोजन कमवा गावे, मुणी मूरा सी. स फटावें ॥ जव रुंदममता जासे, सह आगल चारण नाते ॥ कथ० ॥३॥ कहणी तो जगत मजूरी, रहणी हे बंदी हजूरी ॥ कहणी साकर सम मीठी, रहणी अति लागे अनीठी ॥ कय ॥ ४॥ जब रहणीका घर पार्ष, कयणी तब गिणती आ. वे ॥ अब चिदानंद इम जोइ, रहणीकी सेज रहे सोई॥ कथा ॥५॥ इति पदं ॥ ॥राग आशावरी॥ अवधू पियो अनुलव रस प्याला, कहत प्रेम मतिवाला ॥ अ० ॥ ए आंकणी ॥ अंतर सप्तवात रस लेदो, परम प्रेम नपजावे ॥ पूरव जाव अपस्या पलटी, अजा रूप दरमावे ॥ अ० ॥१॥ नख शिख रहत खुमारी जाकी, सजल सघन घन जैसी ॥ जिन ए प्याला पिया तिनकू. और केफरति कैसी ॥ अ० ॥ ३॥ अमृत होय हलाहल जाकुं. रोग शोक नविव्यापे ॥रहत सदा गरकाव नमामें, बंधन ममता कापे ॥ अ० ॥ ३॥ सस संतोप दीयामें धारे, आतम काज मुधारे ।। दीन नाव हिरदे नही आणे, आपनो विरुद संजारे ॥ अ० ॥ ४ ॥ लावदया रणधंन रोपके, अनहद तूर वजावे ॥ चिदानंद अतुलीब. त राजा, जीत अरि घर आवे ॥ अ० ॥५॥ इति पदं ॥ ॥हो वांसमी वरण यह लागी रे व्रजनी नारने ॥ ए देशी ॥ ॥ हो प्रीतमजी प्रीतकी रीत अनित्य तजी चित्त धारीयें ॥ हो वालमजी वचन तणो अति नमो मरम विचारियें ॥ ए आकणी ॥ तुमें कुमति के घर जावो तो, निज कुलमें खोट लगावोबो, धिक एल जगतनी खाचो हो । हा प्री० ॥ १॥ तमें त्याग अमी विष पीयो बो, कुगतिनो मारग लीयो बो. एतो काज अजुगतो कीयो बो ॥ हो पी० ॥ २ ॥ ए तो मोहरायकी चेटी बे, शिव संपत्ति एदयी बेटी , ए तो साकरतें गल पेटी । हो पी० ॥३॥ एक शंका मेरे मन आवी , किण विध ए तुम चित्त नावी डे, एनो माकण जगमें चाय बे ॥ हो पी० ॥४॥ सहु शदि तुमारी खाई डे, करी कामण मति जरमाई, तुमें पुण्य जोगें ए पाई दे ॥ हो पी० ॥५॥ मत प्रांव काज बावल बोवो, अनुपम जब विरया नवि खोवो, अब खो २०॥ मन आवी , किण वि. dain Edu on International For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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