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________________ साधु সনি अर्थः Mनंद इस्या जन उत्तम, सो सादेवका प्यारा ॥ अव० ॥ ५ ॥ इति पदं ।। मूत्र ॥राग आशावरी॥ ॥ अवधू खोलि नयन अब जोवो ॥गि मुक्ति कहा सोवो ॥ अवधू 0॥ ए आंकणी ॥ मोह निंद सोबत तूंखोया, सरवस माल अपाणा !! पांच चोर अजहुं तोय छूटत, तास मरम नहिं जाएया ॥ अवधू 0 ॥१॥ मलीचार चमाल चोककी, मंत्री नाम धराया ॥ पाई केक पीयाला तोहे, सकल मुलक मग खाया ।। अवधू ॥२॥ शत्रुराय महाबल जोहा, निमनिज सेन सजाये ॥ गुणगणेमें वांव मोरचे, घेख्या तुम पुर आये ॥ अवधू ॥ ६॥ परमादी तूं होय पियारे, परवशता दुःख पावे ॥ गया राज पुर सारयोती फिर पागा घर ॥ अवधू० ॥ ४॥ सांजली वचन विवेक मित्तका, जिनमें निजदल जोड्या ॥ चिदानंदएसी रमत रमतां, ब्रह्म वंका गढ़ तोड्या ॥ अवधू ॥५॥ इति पदं ॥ ॥राग बिहाग वा टोमो॥ । लघुता मेरे मन मानी, लइ गुरुगम झान निशानी ॥ लघु० ॥ ए आंकणी ॥ मद अष्ट जिनोंने धारे, ते दुर्गति गये बिचारे ॥ देखो जगतमे पानी, ख लहत अधिक अनिमानी ।। लघु० ॥ १॥ शशी मुरज बमे कहावे. ते राहुके बस आवे ॥ तारा गण लघुता धारी, स्वरजानु जीति निवारी ॥ लघु ॥ ३ ॥ बोटी अति जोयणगंधी, लहे खटरस स्वाद सुगंधी ॥ करटी मोटाइ धारे, ते ठार शीष निज मारे । लघु० ॥ ३ ॥ जब बालचंझ होइ आवे, तब सडु जग देखण धावे ॥ पूनमदिन बमा कहावे, तब हीण कसा होय जावे ॥ लघु० ॥४॥ गुरुवाइ मनमे वंदे, नप श्रवण नासिका दे ॥ अंगमाहे लघु कहावे, ते कारण चरण पूजावे ॥ लघु० ॥ ५ ॥ शिशु राजधाममें लावे, सखी हिलमिल गोद खीलावे ॥ होय बझा जाण नवि पावे, जावे तो सीस कटावे ॥ लघु० ॥ ६ ॥ अंतर मद जाव वहावे, तब त्रिजुवन नाथ कहावे ।। श्म चिदानंद ए गावे, रहणी किरला कोन पावे लघु०॥७इति पदं ।। H120 ॥ राग टोमो. ॥ ॥ कथण कथे सह कोइ, रहणी अति दुर्लन होई ॥ कय० ॥ ए आंकणी । शुक रामको नाम बखाणं, नवि परमारथ Sain Edu m arana For Personal & Private Use Only wwww.jaintrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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