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________________ अर्थः साधु || मूढ कहाया रे ॥ काग नमावण काज विप्र जिम, मार मणि पडताया रे ॥ पू० ॥२॥ नदी घोल पाखान न्याय कर, अईपति वाट तो आया रे ॥ अई सुगम आगल रही तिनकं, जिन कछ मोह घटाया रे ॥ पू० ॥३॥ चेतन चार गतिमें निश्चे, मोदक्षार ए काया रे ॥ करत कामना मुर पण याकी, जिनकू अनर्गल माया रे ॥ पू० ॥॥रोहण गिरि जिम रतनखाण ति म, गुण सहू यामें समाया रे ॥ महिमा मुखथी वरणत जाकी, मुरपति मन शंकाया रे ॥ पू० ॥५॥ कल्पत सम संयम के1300॥ रो, अति शीतल जिहां बाया रे ॥ चरण करण गुण धरण महामुनि, मधुकर मन लोजाया रे ॥ पू० ॥ ६॥ या तन विण तिहुं काल कहो किन, साचा मुख निपजाया रे ।। अवसर पाय न चूक चिदानंद, सद्गुरु यूं दरसाया रे ॥ पू० ॥७॥ इति. ॥राग शोरठ.॥ ॥ निराधार केम मूकी, श्याम मुने निराधार केम मूकी ॥ कोई नही हुं कोणशुं बोलु, सहु आलंबनटूकी ॥ श्या ॥१॥ पाणनाथ तुमें दूर पाख्या, मूकी नेह निराशी ॥ जजणना नित्य प्रति गुण गातां जनमारो किम जामी ॥ श्या० ॥॥ जेह नो पद लहीने बोलुं, ते मनमां सुख आणे ॥ जेहनो पद गूकीने बोलुं, ते जनम लगें चित्त ताणे ॥ श्या० ॥ ३॥ वात तमारी मनमां आवे, काण आगल जई बोलु ॥ ललित खलित खल जो ते देखु, आम माल धन खोलु ॥ श्या० ॥ ४॥ घटें घटें बो अंतरजामी, मुजमा कां नवि देखु । जे देखं ते नजर न आये, गुणकर वस्तु विशेखु ॥ श्या० ॥५॥ अवधे केहनी वाटमी जोनं, विण अवर्षे अति कुरूं। आनंदघन मनु वेगे पधारो, जिम मन आशा पूर्फ ॥ श्या० ॥६॥ इतिपदं ॥ ॥राग आशावरी तथा गोमी. ॥ ॥ अवधू निरपत विरला को॥देख्या जग सहु जो अवधू ए आंकणी॥ समरस जाव जला चित जाके, थाप उयाप न हो ॥ अविनाशीके घरको वातां, जानेंगे नर मोई ॥ अव० ॥१॥ राव रंकमें लेद न जाने, कनक नपल सम ले. खे ॥ नारी नागणीको नही परिचय, तो शिवमंदिर देखे ॥ अव ॥ ॥ निंदा स्तुति श्रवण सुणीने, हर्ष शोक नवि आणे ॥ ते जगमें जोगीसर पूरा, निस चढने गुणठाणे ॥ अव०॥३॥ चंइ समान सौम्यता जाकी, सायर जेम गंजीरा ॥ अममतें जारंभ परें निख, सुरगिरि सम युचि धीरा ॥ अव०॥॥ पंकज नाम धराय पंकथु, रहत कमल जिम न्यारा ॥ चिदा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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