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________________ साधु प्रति ॥३०॥ कल अविनाशि, समज देख दिलमांहि ॥ सं० ।। ए ॥ तन मन वचन पणे जे पुदगल, वार अनंती धार्या ॥ वम्या आहार मूत्र अझान गहलथी, फिर फिर लागत प्यारा ॥ सं० ॥ ॥ धन्य धन्य जग ते प्राणी, जे नित रहत नदास ।। शुभ विवेकशी हीयेमें धारी, करे न परकी प्राश ॥ सं०॥१॥ धन्य धन्य जगमां ते पाणी, जे घट समता आणे ॥ वाद विवाद हिये नविधारे, परमारथ पंथ जाणे ॥ सं०॥ ए ॥ धन्य धन्य जगमा ते प्राणी, जे गुरु वचन विचारे ॥ अष्टदयाना मर्म लहीने, आलमकाज सुधारे ॥ सं0 ।। ५३॥ धन्य धन्य जगमां ते पाणी, जेह प्रतिज्ञा धारे ।। प्राण जाय पण धर्म न मूके. शुक्ष वचन अनुसारे ॥ सं० ॥ ए४ ॥ इम विवेक हिरिदेने धारी सपर नाव विचारो ॥ काया जीव झानहग देखत, अहि कंचुकी जिम न्यारो ॥ सं०॥॥ गर्नादिक दुःख वार अनंती, पुद्गलसंगें पाये॥ पुदगलसंग निवार पलकमें, अजरामर कहवाये । सं० । ए६ ॥ राग नाव धारत पुद्गल यो, जे अविवेकी जीव ॥ पाय विवेक राग तजी चेतन, बंधण विगत सदीच ॥ ॥ ॥ ए कर्मबंधनो हेतु जोवकुं, राग ऐप जिन लाखे ॥ तजी राग अरू रोप हियेथी, अनुजवरस कोन चाखे ॥ सं० ॥ एG! पुरलसंग विना चेतनमें, कर्मकलंक न कोय ॥ जिम वायु संयोगविना जल, मांही तरंग न होय ॥ सं०॥ ॥ जीव अजीव तच विनुवनमें, युमल जिनेश्वर लाखे । अपर तत्व जे सप्त रहे ते, संयोगिक जिन दाखे ॥ सं० ॥ १० ॥ गुण पर्याय इन्य दोळके, जुए जुए दरसाये ॥ ए समजा जिएके हिय मतरी. तेतो निजधर आये ।। सं ॥ ११॥ द पंचशत अधिक तिरेशठ. जीव तणा जे कहीयें ॥ ते पुल संयोग थकी सहू, व्यवहार सरदहीये ॥सं ॥ १२ ॥ निदचें नय विद्रुप व्यय, जेदनाव नहि कोय ॥बंध अबंधकता नय पखथी, इण वध जाणो दोय ॥ सं०॥ १०३ ॥जेद पंचशत त्रीश अधिक रूपी पुलके जाणो॥ त्रीश अरूपी इव्यतणे जिनागमथी मन आणी ॥ सं० ॥१७॥ पुलनेद नाव श्म जाणी, परपख राग निवारो ॥ शुक्ष रमणता रूप बोध अंतर्गत सदा विचारो ॥ सं०॥ १०५ ॥ रूप रूप रूपांतर जाणी, आणी अतुल विवेक ।। तद मत लेश लीनता धारे, सो छाता अतिरेक ॥ सं०॥ १०६ ॥धार लीनता लवलव लाई, चपलजाव विसराई। आवागमन नही जिप थानक, रहियें तहां समाई॥ सं०।१०। बाल ख्याल रचियो ए अनुपम, अल्पमति अनुसार 1100 ॥ बाल जीवकुं अति उपग.री, चिदानंद सुखकार ॥ सं० ॥ १० ॥ ॥ इति पुद्गलगीता संपूर्णा ।। - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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