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सूत्र
अर्थः
॥ अथ श्रीगौतमपृचानी चोपाइ प्रारंनः ॥ प्रतिक ॥ ॥दोहा॥ सकल मनोरथ पूरवे, चोवीशमो जिणचंद ॥मोवनवान साहे सदा, पेखे परमानंद ॥ १ ॥ समवसरण देवें म.
तम गम ॥ पद्मासन पूरी करी, बेठा विभवन स्वाम ॥२॥ बेठा मुनिवर केवली, गणहर वर अगियार ॥ सु॥३०॥ र नर किन्नर मानवी, बेठी परखद बार ॥ ३ ॥ तव गोयम मन चिंतवे, जीवितनो ए सार ॥जे कां आपणयकी, कीजें पर नपकार ॥ ४॥ गोयम हियमे जाणतो, आणी पर नपकार ॥ मना सहुको सांजले, पूढे इश्यो विचार ॥५॥
॥ढाल ॥ चोपाइ ॥ ॥ पहेला वीरजिणेसर पाय, प्रणमी गोयम गणहर राय ॥ कर जोमीने आगल रहे, मुललित नापा एणी परें कहे ॥ ६ ॥ तुं जिन जक्ति मुक्ति दातार, तुज गुण कोइ न पामे पार ॥ में लेटयो विनुवननो देव, पुण्य पाप फल पृर्छ हेव ॥ ॥ ॥ वलतुं बोले वीर जिणंद, गांयम तुं आणे आणंद ॥ पृठे पृष्ठा जे तुज गमे, तस हूं उत्तर आपीश तिम ॥ ॥ आगे मयगलने मद जरचो, एक पंचायणने पाखों ॥ आगे गोयमनुं जग वान, लाधुं वोर तणुं वली मान ॥ए ॥ नवियण नाव जलेरो धरी, अंग तणी आलस परहरी ॥ मुणजो हर्प हिये नलसी, गोयमपृच्छा पूरे किसी ॥ १० ॥ नगवन् ! जीव नरक शे जाय, तेहज अमर नुवन सुर थाय ॥ तिरियमांहे ते दुःख केम सहे, कशे कर्मे मानव जव लहे ॥१२॥ तेहिज पुरुष प. णे संसार, कीशे कम ते याये नार ॥ कहो जिनवर पूरो मन रली, तेहज किश नपुंसक वली ।। १२ ॥ थोड़ें आयु होय तेह तणु, किशे कमै होये ते घj ॥ जोग रति शे नवि जोगवे, तेहिन लोग जला जोगवे ॥ १३ ॥ किशे कमैं सोजागी होय, किशे कम दोजागी जोय ॥ तेहिज बुद्धि तणो मार. किशे कम नवि बुद्धि लगार ॥२॥ तेहिज पंमितमांहे प्रधान, शे कमें
थाये अज्ञान ॥जी धीरू कोण कमै सोय, विद्या सफल निःफल केम होय ॥ १५ ॥ नासे धन वाधे थिर थाय, जन्म्या पु. || न जीवे कांय ॥ पोहा पुत्र घणा शे स्वामि, बहिरपणुं शे कमें विराम ॥ १६ ॥ जावो नर शें अवतरे, के कमें लोजन नविजरे ॥ किशे करें कोदी कूवमो, दासपणे पामे वापमो ॥ १७॥ किशे कमें दारिमित, किशे कम तेहज धनवंत ॥ रांगें पीड्यो पारीव, रोग रहित शें थाये जीव ॥ १७॥ गोयम पूजे कही जिनवीर, शे कमै होये हीन शरीर ॥ तमु पर जब शुं पमीयो चूक, जे एणे नवें थाये ते मूक ॥ १५ ॥ किशे में तूंठो पांगलो, किशे कमै क आगलो ॥ विकट कर्मन कहा स्व
धीरू कोण कम
सादिरपणुं शे कम
में दारिद
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