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साए || लोक घृतघट जिम, पुदगलव्ये जरिया ॥ खंध देश परदेश नेद तस, परमाणु जिन करिया ॥ सं॥६॥निस अनिसादिक प्रति || जे अंतर, पद समान विशेष । स्याक्षाद समजणनी शैली, जिनवाणी में देख ॥ सं०॥ ६॥ पूरण गलन धर्मथी पुदगल,
|| नाम जिणंद वखाणे ॥ केवलविण परजाय अनंती चार ज्ञान नवि जाणे ॥२०॥ १० ॥ १३००॥|| शुनथीशुल अशुनथी जे शुन, मूल स्वनावें थाय ॥ धर्मपालटण पुद्गलनो इम, सतगुरु दीयो बताय ॥ सं० ॥शी अष्टवर्ग
णा पुद्गलकेरी, पामी तास संयोग ॥जयो जीवकुं एम अनादी, बंधणरूपी रोग ॥ १२॥ गहत वरगणा शुनपुद्गलकी, शुजपरिणामें जीत्र ॥ अशुन अशुन परिणाम योगयी, जाणो एम सदीव ॥ सं० ॥ १३ ॥ शुजसंयोगे पुण्य संचवे, अशुजयोग
थी पाप ॥ लहत विशुनाव जब चेतन, समजे आपा आप ॥ सं०॥ १४ ॥ तीन नुवनमें देखीये सहु, पुद्गलका विहार ॥ पु॥ द्गलविण कोन सिझरूपमें, दरसत नहि विकार ॥ सं० ॥ ५५ ॥ पुद्गलहूंके महेल मालीये, पुद्गलहुंकी सहेज ॥ पुद्गलपिमनारको तेथी, मुख विलसित धार हेज ॥ सं० ॥६॥ पुद्गलपिम धारके चेतन, जुपति नाम धरावे ॥ पुलवलथी पुरत नपर, अहनिश हुकुम चलावे ॥ सं० ॥ ७ ॥ पुलहुंके वस्त्र आभूषण, तेथी भूपित काया ॥ पुलहुंका चमर डब सिंहासन अजब बनाया ॥ सं० ॥ ७ ॥ पुलहुंका किला कोट अरु, पुलहुंकी खाई॥ पुद्गलकाहुंथो दारुगोला, रचपच तोष वणा॥ सं०॥ 3ए ॥ परपुद्गलरागी या चेतन, करत महासंगराम ॥ बल बल करी एम चिंतवे, राखुं अपणु नाम ॥ सं०॥०॥
क्षिसिविंके गह तोमो, जोमी अगम अपार ॥ पण ते पुद्गलश्व्य स्वनावें, विसत लगे न वार ॥ सं०॥१॥ पुद्गलक संयोग वियोगे, हरख शोक चित्त धारे ॥ अथिरवस्तु थिरहोइ कहो किम, इणिविध नहीय विचारे ॥ सं० ॥७॥ जा तनको मन गर्व धरतहै, बिनबिन रूपनिहार ॥ तैतो पुमलपिम्पलकमें, जल वल होवे बार ॥ सं ॥७३॥ इणविध ज्ञान हीये मेंधारी, गर्व न कीजे मित्त ॥ अथिरखनाव जाण पुलको, तजो अनादो रीत ॥ सं० ॥ ४॥ परमातमथी नेह निरंतर, लावो त्रकरण शुभ ॥ पावो गुरु गम झान मुधारस, पूरवपर अविरुप ॥ सं०॥५॥ छाननान पूरण घट अंतर, थया जिहां पस्मास ॥ मोदनिशाचर तास तेज लख, नाग थई नदास ॥ सं० ॥ ६ ॥ दशान अंतर दृगधारी, परिहर पुजलजाल ॥ खीस्नीरको जिन्नता जिम, जिनमें करत मराल ॥ सं०॥७॥ एहवा लेद सखी पुलका, मन संतोष धरीजें ॥ हाण लाल सु. ख दुःख अवसरमें, हर्ष शोक नवी कोनें ॥ सं० ॥ 6 ॥ जो नपजे सो तुं नह। अरु, विणमे सोतुं नाहि ॥ तुं तो अचल अ
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