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________________ | अर्थः साधु | हेवाय ॥ सं० ॥ ६ ॥ पुण्य पाप पुसदशा इम, जे जाणे सम तुल ॥ शुनकिरिया फल नबि चाहे ए, जाण अध्यातममूल, प्रति ॥ सं०॥७॥ शुजकिरिया आचरण आचरे, धरें न ममता जाव ॥ नुतन बंध होय नही इण विध. प्रथम अरि शिव धाव ॥ सं० ॥४०॥ वार अनंत चूकीया चेतन, श्ण अवसर मत चूक | मार नोशाना मोहरायको, बाती में मत ऊक ॥ सं॥ ॥श्ए ४॥ नदी गोल पाषाण न्याय करी, दुर्लन अवसर पायो॥ चितामणि तज काच सकल सम, पुलथी लोनायो ।सं०ए०॥ परवसता दुःख पावत, चेतन पुद्गलथो लोजाय ॥चम आरोपिन बंध विचारत, मरकट मूठी न्याय ।। सं० ।। ५१ ॥ पु. द्गल राग जावथी चेतन, थिर सरूप नवि होत ॥ चिहुं गतिमां लटकत निशदिन म जिम जमरिबिच पोत ॥ सं० ॥ ५॥ जमलक्षण परगट जे पुद्गल, तास मर्म नवि जाणे ॥ मदिरापान बक्यो जिम मद्यप, स्व र नवि पीडाणे ॥ २० ॥ ५३॥जीव अरूपी रूप धरत ते, परपरणित परसंग ॥ वज्ररत्रमा मंक योग जिम, दर्शित नानारंग ।। सं0 ।। ५४ ॥ निजगुण साग राम परयो थिर, गहत अशुजदल थोक ॥ शुरुधिर तज गंधो लोही, पान करत जिम जोक ॥ सं०॥ ५५ ॥ जम पुद्गल चे तनकुं जगमें, नाना नाच नचावे ॥ बाली खात वाघकुं यारो, ए अचरिज मन आवे ॥२॥ ॥ २६ ॥ ज्ञान अनंत जीवनो निजगुण, ते पुद्गल आवरियो । जे अनंत शक्तिनो नायक, ते ण कायर करियो । सं० ॥ ५५ ॥ चेतनकुं पुद्गल ये निशदिन नानाविध दुःख घाले ॥ पण पिंजरगत नाहरनी परें, जोर कछु नवि चाले ॥ सं० ॥ ५० ॥ इतने परजी जो चेतनकुं, पुजल सं|| ग सोहावे ॥ रोगी नरजिम कुपथी करीने, मनमा हर्षीत थावे ॥ सं० ॥ ॥ जाखपास कुल न्यात न जाकुं, नाम गाम नवि कोई ॥ पुलसंगत नाम धरावत, निजगुण सघलो सोई ॥ संग ॥ ६० ॥ पुलके वस हालत चालत, पुलके वस बोले ।। कहुंक बेठा टकटक जूए कहुंक नयण न खोले ।। सं० ।। ६१ ॥ मनगमता कहुं लोग जोगवे, मुख सज्यामें सोवे ॥ कहुंक नूख्या तरस्या बाहर, पड्या गलीमें रोवे ॥ सं० ॥ ६ ॥ पुलवश एकेंशिक बहु, पंचेंडीपण पावे ।' लेश्यावंत जीव ए जगमें, पु द्गल संघ कहावे ॥ सं० ॥६३ ।। चनदे गुणथानक मारगणा, पुलसंगें जाणो ॥ पुल जाव विना चेतनमें, लेद जाव ॥श्रण नवि आणणे ॥ मं ॥ ६ ॥ पाणीमांहे गले जे वस्तु, जले अगनि संयोग ॥ पुलपिम जाण ते चेतन, खाग हरख अरुसोग । सं० ।। ६५ ॥ बाया आकृति तेज द्युति सहु, पुलकी परजाय ॥ समन पम्न विध्वंस धर्म ए, पुद्गलको कहेवाय ॥ सं॥६॥ मस्या पिक जेहने बंधे बे, कालें विखरी जाय ॥ चरम नयण करी देखीये ते, सहु पुद्गल कहेवाय ॥ सं० ॥ ६॥ चौदेराज Join Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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