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ए॥
विचार ॥२॥ लाखबातकी बात ईह। जो कु देई बताय ॥ जो परमातम पद चहो। राग देष तज लाइ ॥२५॥ रा म ऐप सागविनुं । परमातयपद नांहि ॥ कोटी कोटी जपतप करो । सब अकारय जाय, ॥६॥ दोष आतमाकुं ह । राग द्वेषको मंग॥ जेसे पास मजीठमें । वस्त्र र हि रंग ॥१५॥ तेसे आतम इव्यकुं । राग देषके पास ॥ कर्म रंग लागत रहे । कैसे खहे प्रकाश ॥ ॥ ईण करमनको जीतयो । कठिन बातहे वीर ॥ जर खोद विर्नु नहि मिटें दुष्ट जात बेपीर ॥ ॥ लखो यतो के कीयो । ए पिटवेके नाहि ॥ ध्यान अगनि परकाशके होम देहि तेमांहि ॥३०॥ ज्युं दारुके गंजकुं। नर नदि सके नगाय ॥ तनक आग संजोग ते । बिन एकमें नम जाय ॥ ३१ ॥ देह सहित परमातमा। एह अचरिजकी बात ॥ रागषके साग ते । करम शक्ति जरी जात ॥ ३३ ॥ परमातमके नेद क्ष्य । निकल सगल परवान ॥ मुख अनंतमें एकसे । कहेवे के क्ष्य याय ॥ ३३॥ लाई एह परमातमा । सोहं तुममें याहि ॥ अपनि जक्ति संजारके। लिखा बगदेतांहि ॥३४॥ रागदेषकु सागके । धरी परमातम ध्यान ॥ युं पावे सुख शाश्वत जाई म कस्यान ॥ ३५ ॥ परमातम बत्रीसीकों। पदीयो प्रीति संजार ॥ चिदानंद तुमप्रति लखि । आतमके नकार ॥ ३६॥
॥इति परमातम उत्रीसी समाता ॥
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॥ अथ श्रीचिदानंदजी कृत पुद्गलगीता प्रारंनः॥ ॥ क्या धन में गदाबे. एकदिन माटीमें मिल जाना ॥
॥ए देशी ॥ ॥ संतो देखीयें बे, परगट पुनल जाल तमासा ॥ ए आंकण। ॥ पुल स्वाणो पुजल पीणो, पुरुल हुंयी काया । वर्ण गं ।। ध रस फरस सहु ए, पुलहुकी माया ॥ संतो ॥१॥ खान पान पुल बनावे, नही पुरुल विण काय ॥ वर्णादिक नही जी. | ॥६॥ वमें के दोनो लेद बताय ॥ सं० ॥ ॥ पुल काला नीला राता, पीला पुल होय ॥ धवला युत ए पंचवरणा गुण, पुलहुंका जोय ॥ सं० ॥ ३॥ पुलविण काला नदि बे, नील रक्त अरु पीत ॥ श्वेतवर्ण पुरल बिना वे, चेतनमें नही मोत ॥ सं॥
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