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________________ सा ॥ अथ परमातम उत्रीसी प्रारंन्नः ।। प्रति परमदेव परमातमा । परम ज्योति जगदीस ॥ परम नाव नर आनकें । प्रणमत हु नीसदीम ॥ १ ॥ एक ज्युं चेतन इव्य ।। अर्थः है। तोमें तीन प्रकार ॥ बहिरातम अंतर कह्यो । परमातम पद सार ॥२॥ बहिरातम ताकुं कहै । लेखे ते ब्रह्म स्वरूप ॥ मा॥३ ॥ गन रहे पर इव्य है । मिथ्यावंत अनूप ॥ ३ ॥ अंतर आतमा जीव सों। सम्यक् दृष्टि होय ॥ वे यै अरु फुनि वारमै । गु णथानकलों सोय ॥ ४ ॥ परमातम पद ब्रह्मकों । प्रगट्यो सुइ स्वजाव ॥ लोकालोक प्रमाण सय । ऊलके तिनिमें प्राय ।.॥ बाहिर आतम नाव तज । अंतर आतमा होय ॥ परमातम जजतु है। परमातम वहे सोय ॥६॥ परमातम मोइ आतमा। अ वर न दुजो कोई॥ परमातमकुं ध्यावते । एह परमातम होय ॥ ॥ परमातम एह ब्रह्म है । परम ज्योती जगदीस ॥ परसु जिन्न निहारोये । जोई अलख सोइ इस ॥ ॥ जे परमातममि में । सोही आतमामांहि ॥ मोद मयल इग लगी रह्यो । तामें मूकत नाही ॥ ए ॥ मोह मयल रागादिके। जा लिनकिजे नास ॥ तानिन एह परमातमा । आपहि लहे प्रकास ॥१०॥ आतम सो परमातमा । परमातम सोई सि ॥ विचकी दुविधा मटगई । प्रगट नईनिज रिच ॥ ११ ॥ मेंहि सिम परमातमा । मेंहि आतमाराम ॥ मेंहि ग्याता गेयको । चेतन मेरो नाम ॥ १२ ॥ मेंहि अनंत सुखको धन । मुखमें मोहि सोहाय ।। अविनासी आणंमदय | सो अहं विजुवनराय ॥ १३ ॥ मुह हमारो रूपहें। शोजित सिम समान ॥ गुण अनंत करी संयुत । चिदानंद जगवान ॥ १४ ॥ जे सो सिव तहि वसे । तेसो या तनमांहि ॥ निश्चयदृष्टि निहारतां । फेर रंच कछु नाहि ॥ २५ ॥ करमनके संजोग । जए तीन प्रकार ॥ एक आतमा इव्यकुं । करम नटावणहार ॥ १६ ॥ कर्मसंघातें अनादिके। जोर कछु बसाय ॥ पाइ कला विवेककी । रागष बिन जाय ॥ १७ ॥ करमनकी जर राग हे । राग जरे जर जाय ॥ परम होत परमातमा । जाइ मुठाम नपाय ॥ १० ॥ काहेकुं लटकत फिरे । सिम होनके काज ॥रागक्षेपकुं खाग दे । जाइ सुगम इलाज ॥ १९ ॥ परमातमपदको धनी। रंक जयो बिल लाय ॥रागक्षेषकी प्रीति सौ । जनम अकारथ जाय ॥ २० ॥ रागषकी मोति तुम । भुले करो जन रंच ॥ परमातम पद ढांकके । तुमहि किये तिरयंच ॥ १॥ जप तप संजम सब ॥श्य ललो । रागष यौ नादि ॥रागप जो जागते । एसब जए कांहि ॥ १२॥ रागषके नासते । परमातम परकास ॥ रागदेष | कैलासते । परमातम पद नास ॥ १३ ॥ जो परमातम पद चहें । तो तुं राग निवार ॥ देखी संजोग सामीको । अपने हिये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janay.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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