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________________ __साधु पतिः अर्थः ॥शए॥ ॥ ३॥ सुरजिगंध दुरबंधता वे, पुलहमें होय || पुलका परसंग विना ते, जीवमांहे नवि होय ॥ सं०॥५॥ पुल तोखा कमवा पुगल, फुनि कसायल कहोवें ॥ खाटा मीठा पुल केरा, रस पांचं सहहीयें ।। सं० ॥६॥ शीत कृष्णा अरु काग कोमल, हलुवा नारी सोय ॥ चिकणा रूखा आठ फरस ए, पुलहुमें होय ॥ सं० ॥ ७ ॥ पुरुलथी न्यारा सदा जे, जाण अफरसी जीव ॥ ताका अनुनब नेद शानयी, गुरुगम करो सदीव । सं० ॥ ॥ क्रोधी मानी मायी लोनी, पुनल रागे होय ॥ पुलसंग बिना चेनन ए, शिवनायक नित जोय ॥ संछ ॥ ॥ नर नारी नपुंसक वेदी, पुलके परसंग ॥ जाण अवेदी सदा जोव ए, पुल विना अनंग ॥ सं० ॥१०॥ बूढा बाला तरुण थया ते, पुरुसका संग धार ॥ त्रिहुं अवस्था नही जीवमें, पुलसंग निवार । सं0 ॥ ११ ॥ जन्म जरा मरणादिक चेतन, नानाविध रख पावे ॥ पुल संग निवारत तिण दिन, अजरामर होय जावे ॥ सं० ॥ १२॥ पुरुल राग करी चेतनकुं, होत कर्मको बंध ॥ पुरुल गग विसारत मनथी, नीरागी निबंध ॥ सं० ॥ १३ ॥ तन मन काय जोग पुलयो, निपजावे नितमेव ॥ पुलसंग विना अयोगी, थाय लही निजत्नेव ॥ २० ॥१॥ पुद्गल पिंक थको निपजावे, जला जयंकर रूप ॥ पुरुलका परिहार कियाथी, होवे आप अरूप ॥ सं० ॥ १५॥ पुरुल रागी थइ धरत निज, देहगेहथी नेह ॥ पुल राग लाव तज दीलथी, जिनमें होत विदेह ॥ सं० ॥ १६ ॥ पुल पिक लोलुपी चे. तन, जगमें रांक कहावे ॥ पुरुस नेह निवार पलकमें, जगपति बिरुद धरावे ॥ सं० ॥ १७ ॥ पुद्गलमोह प्रसंगें चेतन, चारुगतिमें जटके ॥ पुद्गलनेह तजी शिव जाता, समयमात्र नहिं अटके ॥ सं० ॥ १७ ॥ पुद्गलरस रागी जग जटकत, काल अनंत गमायो । काची दोय घमीमें निज गुण, राग तजी प्रगटायो । सं० ॥१७॥ पुद्गल रागें वार अनंती, तात मात मुत थश्या॥ किसका बेटा किसका बाबा । जेद साच जब लहीया ॥ सं० ॥ २०॥ पुद्गलमंग नाटक बहु नटवत, करतां पार न पायो ॥ जवस्थिति परिपक य तब, सहेजें मारग आयो ॥ सं० ॥ १॥ पुदगलरागें देहादिक निज, मान मिथ्याती सोय ॥ देहगेहनो नेह तजीने, सम्यकदृष्ट होय ॥ सं० ॥ ॥ काल अनंत निगोद धाममें, पुद्गल रागें रहियो ॥ कुःख अनंत नरकादिकयी तुं, अधिक बहुविधि सहियो ॥ सं० ॥ १३ ॥ पाय अकाम निडाराको बल, किंचित मुंचो आयो ॥ बादरमा पुद्गल रस वशयी, कान असंखगमायो ॥सं० ॥ २४ ॥ लही योपशम मतिझानको, पंचेश्यि जवलाधी॥ विषयासक्त राग पुदगलथी, धार नरक गति साधी॥सं० ॥ २५॥ वामन मारन ले ३० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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