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________________ प्रति ॥ ६॥ एना नपर कृपा न करूं, एवो विचार मोटा पुरुष करता नयी, ए नाव डे. तेलपर दृष्टांत करे ले. भुविके० ( पृथ्वीन विषे, दाह के० (दाई) दाहने, ममंतन के0 ( शमयन् ) शमावतो एवो, पणु || अर्थ: के ( घनः ) मेघ जेते, समविसमई के० ( समविपमाणि ) सरखां स्यान, ने नचा नीचो स्यान, तेने कि के शुं, निया के (पश्यति ) जुये बे अर्यात जोतो नयी. एटले मेघ वरसात करती वखन विचार करतो नथी. के, या सारूं स्थान बे, माटे इहां वरस. ने, आ सारुं स्थान नयी, माटे यहां न वरसवं एम तमे पण, दुःखित नपर दया करती वखत सार असारनो विचार करता नयी. इय के ( इतिहेतोः) ए हेतुनाटे, अहिवंबध के० (हे दुःखिबान्धव! ) दुःखवाला जनना बंधु समान. ए टले जेम यांधव दुःखनो नाश करे तेम, दुःखित जनना दुःखनो नाश करनार एवा. पासनाद के0 (हे पार्वनाथ! ) थुर्णतन के (स्तुवन्तं ) स्तुति करतो एवो, मइ के० ( मां ) मने, पाल के० (पालय) पालन करो. एटले मारूं रक्षण करो. ॥ ॥ ना-जगवन् ! वली कदाचित आप एम विचारता दशो के, योग्य तया अयोग्य एवो विचार तो अपारे करवो घ. टेले. तो तेवीरीते पण हुं कृपा करवाने योग्य छ. ते प्रकारनी स्तुति करे .-- ॥ नय दोगह दीगयुं, मुयवि अन्नुवि किवि जुग्गय । जं जोइवि नवयार, करहि नवयार-समुऊय ॥ दीगह दीगु निहीणु, जेण तइ नाहिण चत्तन । तो जुग्गन अहमेव, पास पालहि मर चंगन ॥ ५ ॥ अर्यः-हे जगवन् ! नवयारसमुङय के० (तरकारसमुधताः) उपकार करवाने नचमवंत थएला एवा महोटा पुरुष जे तेनं के० ( यां)जे योग्यताने जोशनि के० ( गरेपयित्वा) गवेषणा करीने एटले खोलीने नवयार के0 (उपकारं ) उपकारने ॥ ६॥ करहि के० (नि) कर ले. तेव) जुग्गय के0 (योग्यता) योग्यता जे ते, दीपद के० (दीनानां) रंकपुरुषानी, दी[युं के० (दीनतां) रंकपणानी मुयवि के0 ( मुक्खा) मूकीने अन्नुषि के० (अन्यापि ) एटले बीजी पण, किवि के0 ( काचि Jan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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