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साथ
सूत्र
अर्थः
॥२०॥
दपि) को पण योग्यता, नय के० (नच ) नथी. एटले रंक पुरुपर्नु रंकपणुं मूकीने बीजी योग्यता दया करवाने अर्ये खो लवी पमती नथी. ए अर्य जे. अने हं दोणह के० (दीनेन्यः) रंकथकी पण, दीण के0 (दोन) एटले रंक छ. अने निही. णु के0 (निःसत्वः ) अतिशे निर्बल छ, एटले लघु छ. जेण के० ( येन ) जे हेतु माटे नाहिण के (नायेन ) स्वामि एवा तइ के० (त्या) तमो जे तेमणे चत्तन के (सक्तः) साग करचो एवो. तो केश (ततः) ते कारण माटे अदमेव के इंज, जुग्गन के० ( योग्यः ) कृपा करवाने योग्य छु. पास के (हे पार्थ! ) दे पार्श्वनाथप्रनो! चंगन के0 ( चङ्गं, यथा स्यात्तमा कल्याण जेम थाय तेवी रीते मइ के0 ( मां) मने पालदि के0 (पालय ) रक्षण करो. ॥ २५ ॥
॥ अह अन्नुवि जुग्गय-विसेसु किवि मन्नहि दीगह ।
जं पासिवि नवयारु, कर तुद नाह समग्गह ॥ सुच्चिय किल कलाणु, जेण जिण तुम्ह पसीयद ।
किं अनिण तं चेव, देव मा म अवहीरह ॥ २६ ॥ अर्थ-हे जगवन् ! अह के० (अथ ) हये, अन्नुवि के० (अन्यदपि ) बीजो पण कोइ, जुग्गय विसेमु के ( योग्यता विशेष) योग्यपणानो विशेष तेने, किवि के० (किमपि ) कांड पण, मन्नहि के ( मन्यसे ) मानो डो. तो हे नाह के० (हे नाया ) हे स्वामिन् ! समग्गह के0 ( समग्राणां ) समस्त एवा, दीणह के० (दीनानां ) रंक पुरुषोनो, जं के ( यं) जे योग्यताविशेषने, पामिवि के० ( दृष्ट्वापि ) देखीने पण, तुह के० (वं) तमो जे ते, नवयारु के० (उपकारं ) नपकारने, कर के ( करोषि ) करो बो. तो, जिण के० (हे जिन ! ) हे जिनपरमात्मन् ! जेण के ( येन ) जेणे करीने, तुम्ह के0 ( यूयं ) तमो, पसीयह केतां (प्रसीदय ) प्रसन्न थान. सुच्चिय के० ( स एव ) तेज योग्यता विशेष जे ते, किल के निश्चे, कवाणु के० ( कच्चाणं ) कल्याणकारी याय . अन्त्रिण के० (अन्येन ) एटले वीजावके किं के शु. एटले शुं प्रयोजन ? माटे देव के हे देव ! तं चेव के० (तमेव ) तेज योग्यताविशेषन करो. पण म के० (मा) मने, मा अवहीरह के (मा अवधीरयत ) मां
॥२७॥
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