SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थः साधु || तेम दयानी खांणमाथी दयाज नत्पन्न याय. माटे दयानी नत्यत्तिर्नु कारण एका. সনি - बली हन के० ( अहं ) एटले हूं जे ने जिण के हे जिन! पाम के० (हे पार्थ!) हे पार्थनाय ! सामितालु के0 (अ. स्वामिशालः ) स्वामिपणाए रहित एवी रोते शोजतो. अर्थात् सर्व प्रकारना दारिश्यवके शोजतो एको हूं. अनें, तुह के० (त्वं) न्या तमो तिदुअणसामि के (त्रिनुवनस्वामिकः)त्रभुवनना स्मामो एवा. अर्थात् सर्व प्रकारमा ऐश्वर्यवके शोजता एवा बो. एम सते पण, जं के० ( यत् ) एटले जे जला के० (विजपंतं ) विलाप करतो एवो, मई के ( मां ) मने, अवहीरहि के (अवधीरयसि) अवगणना करी बगे. इय के० (८) एटले ए, पास के० (हे पार्थ!) हे श्री पार्थनाय ! न सोहिय के (न शोनितं) नथी शोलतुं. अयवा पास के (पश्य ) देखो !! इस के एन लोहिय नथी शोलतुं. माटे हवे तो जे ते प्रकारे शीघ्र प्रसन्न था. ए जाव ले. ॥ २३ ।। जाण्-हे जगवन् ! कदापि अयोग्य धारीने मारी अवगणना करशो तो ते पण युक्त नथी, एम कहे . ॥ जुग्गाऽजुग्ग-विन्नाग, नाह नदु जोयहि तुह-सम । नुवणुवयार-सहाव-लाव करुणा-रस-सत्तम । सम-विसमई किं घणु, निया नुधि दाह समंतन । . इय उदि-बंधव पास-नाद म पाल शुगंतन ॥ १४ ॥ अर्थ-हे जगवन् ! भुवणुक्यारसहावन्नाव के० (हे नुवनोपकारस्वनावनाव!) एटले जगतने उपकार करनार एवो || बे स्वानाविक अनिमाय ते जेनो एवा. तथा करुणारसप्तत्तम के० (हे करुणारससत्तम!) एटले दयारसबके श्रेष्ठ एवा. नाह in के० ( नाथ!) एटले हे स्वामिन् ! तुदसम के० ( वत्समाः, विनोपः प्राकृतत्वात् ) तमारा जेवा मोटा पुरुषो जे ते, जु. म.जुग्गविजाग के 7 ( योग्यायोग्यविनागम् ) आ योग्य डे, अने आ अयोग्य बे, ए प्रकारना विजागने. नहु के० (नैव ) नयीज, जोयहि के० ( पश्यति ) एटले जोता. या योग्य पुरुष ने, माटे एना उपर कृपा करूं, अने आ तो अयोग्य , माटे dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy