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________________ साधु || हीए. त्रण जगत्ने विष स्वामि केतां सकलैश्वर्य संपूर्ण एवा. वली हे यंञणयपुरथि (हे स्तजनकपुरस्थित!) स्तजनक ना मूत्र प्रति मे पुरन विषे स्थित केतां रहेला एवा हे पास के (हे पार्थ ) हे जिणेस के० (हे जिनेश!) हमारां मुहाइ के० (मुखानि)| अर्थ: मनोवांडित सुखप्रसे कुणमु के० ( कुरु ) करो. एटले अमने सर्व प्रकारे सुखी करो. सुख शब्दमा बहुवचन कयु डे, तेथी आ ॥२६॥ लोक अने परलोक संबंधि सकल सुखनी प्राप्ति, तमारी स्तुति करनारने अणधारी थाय ने! एम मूचना करी. शहां त्रण पदमा ब वाक्यवमे ब प्रकारना आगल कहीशुं एवां ार, तेमनी सूचना करी. अने चोथा पादवमे स्वयंभू श्री पार्श्वनाथनां प्रसव दर्शनयी स्तुति करनार सकल संघनां मनोवांबित पूर्ण करवानी प्रार्थना, आ स्तोत्र रचनार श्री अजयदेवमूरिये करी देखामी. ॥१॥ ॥ तर समरंत लहंति, ऊत्ति वर-पुत्त-कलत्त । धम-सुवाम-हिरम-पुल जण मुंज रजा ॥ पिरकर मुरक असंरक-सुरक तुह पास पसारण । अतिदुअण वर-कप्प-रुरक सुरकर कुल मद चिण ॥ २॥ अर्थः-(हे जगवन् ) त के0 ( त्वां ) तमने, समरंत के० ( स्मरन्तः ) संजारता एवा, जण के ( जनाः ) जन जे ते, वरपुत्तकलत्तइ ( वरपुत्रकलत्राणि ) वर के0 श्रेष्ट एवा, पुत्त के पुत्रो, तथा कलत्त के० स्त्रीयो तेमने, जत्ति के (ऊटिति ) शीघ्र, लहंति के० ( लजन्ते ) लाने ले. एटले पांमे ले. पुत्र शब्दमां दुखथी रक्षण करवा वाचक कर्थ रहेलो ले. कलत्र शब्दमां वंध्यपणुं श्यादि दोष रहित, ने पतिव्रतादि गुणे साहितपणुं इसादि अर्थ रहेलो . तोपण वर केतां श्रेष्ट एवां पुत्र त. था कलत्र एम कह्यु, तेणे कराने आ लोक परलोक संबंधि सुख साधन करवामां मदद देनारां जे पुत्र कलत्र मले बे, ते पण |॥३६० तमारी स्मरणरूप जक्तिनो महिमा डे. एम सूचनाकर ए नाव . वली धन्नमुवलहिरणपुण (धान्यसुवर्णहिरण्यपूर्णानि) ध. न के मांगेर प्रमुख धान्य तया मुवल के सुवर्ण एटले सोनुं तथा हिरण के रूपुं, तेमणे करीने, पुण के संपूर्ण नरेला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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