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________________ । सूत्र अर्थः ॥३२॥ तेमज (अजीयान के०) आयिकाः, एटले आर्यान, अर्थात् पांचे प्रकारनां प्राणातिपातविरमण आदिक महाव्रतोने धारण करनारी एवी साधवीन (वंदंति के० ) वंद्यते, एटले वंदाय बे, अर्यात वांदवामां आवे . वली कोने वांदवामां आयेतो . के, सावया के०) श्रावकाः, एटले श्रावकोने, अर्थात् बारे प्रकारना अणुव्रीने धारण करनारा एवा समकीतधारी श्रावकोने वांदवामां आवे ठे, अर्थात् (वदंति के0) बंयंते, एटले वंदाय . वली कोने वांदवामां आवे ने तो के, (साविया के ) श्राविकाः, एटले श्राकिानने, अर्यात शुभरीते श्रीजैन धर्मने अंगीकार करनारीसमकितरूपी अलंकारने, धारण करनारी श्राविकाने ( बंदंति के ) वंद्यते, एटले वांदवामां आवे बे; अर्थात् तेवीश्राविकानने पण वंदन करवामां आवे ; वली पण कोने बंदाय ने अर्थात् कोने कोने वंदन एटले नमस्कार करवामां आवे ? तो के. पागंतर-(साबगाणं वंदति, साविगावं वंदंति, ) अपि निसल्लो, निकसान ॥ अर्थः-(सावगाणं के0) श्रावकाणां, एटले श्रावकोने, अर्थात् शुभ सम्यक्त्वरूपी रत्नने धारण करनारा श्रावकोने, ( वंदंति के) बंद्यते. एटले चांदवामां आवे बे, अर्थात् तेनने पण नमस्कार करवामां आवे दे. हवे ते शुभ सम्यक्त्व कोने कहे? नो के, शुक्ष देवने शुरूरूपे मानवा, शुज गुरुने शुक्न गुरुरूपे मानवा, तया शुभ दयामय धर्मने शुभ धर्मरूपे मानवो. तेमज कुदेवने कुदेवरूपे मानवा, तया कुगुरुने कुगुरुरूपे मानवा, अने कुधर्मने जे कुधर्मरूपे मानवो, तेनुं नाम समकीत कहेवाय. एवीरीखना शुभ समकीतरूपी रत्नने धारण करी सम्यक्पकारें पालन करनारा एवा श्रावकोने पण वंदन करवामां आवे बे. बली पण कोने बंदन करवामां आवे ने तो के. ( साविगाणं के0) श्राविकाणां, एटले श्राविकाने, अर्थात् पूर्व वर्णववामुजब शुझ समकोतने धारण करनारी श्राविकानने पण (वंदंते के०) वंद्यते, एटले वंदन करवामां आवे ; अर्थात् तेवा प्रकारनी श्रावक धर्मने अंगीकार करनारी हादश व्रतने धारण करनारी शु६ समकीती श्राविकाने पण नमस्कार करवामां आवे . तेमज (अहंपि के0) अहं अपि, एटले हूं पण, अर्थात् हे श्री आचार्यजी महाराज ! हूं पण नमस्कार करूं हूं. ह. वे हूं केवो छु! तो के, ( निसलो के ) निःशल्यः, एटले शख्यवके करीने रहित , अर्थात् मायाशल्य, तथा मिथ्यावशष्य आदिक शल्योयें करीने रहित ययेलो छ. बली हूं केवो छ ? तो के, (निक्कसान केनिःकपायः, एटले कपायोवमे करीने रहित छ. अर्यात् जेणे करीने आत्मा ॥३॥ Jain Educadrinternational For Personal & Private Use Only www.janbibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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