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________________ अर्थ || सपज्जया के0 ) बहुदिवसपर्यायाः, एटले वहु दिवस पर्यायो अर्थात् घणा दिवसोरूपी पर्यायोमुधि एटले ४६ अवस्थाने ली. प्रति धे, शरीर संबंधि बल दीण थइ जवाथी, अथवा विहार करवाथी पगोमां शक्ति नही होवावके करीने, जे क्षेत्रमा स्थिरता करीने रहेला होय, ते देवयकी वहारनां क्षेत्रमा विहार नही करनारा, एवा ( साहुणो के० ) साधवः, एटले साधुन, अर्थात् ॥२ ॥ | एवा वृक्ष मुनिमहाराजो (दिहा के ) दृष्टाः, एटले जोएला होय, अर्थात् जे कोइ मुनिमहाराजोनां में पोते दर्शन करेला होय; तेमज ॥समणा वा, विसमणा वा, गामाणुगामं दुजमाणा वा, रायणिया संपुळंति ॥ अर्थः-(वा के ) वा, एटले अथवा ( समणा के० ) श्रमणाः, एटले श्रमणो अर्थात् श्रमणधर्मने, एटले प्राणातिपातविरमा आदिक पांचे प्रकारनां महाव्रतोने अखंमितरीतें सम्यकप्रकारे पालनारा एवा महामुनिराजो, तेमज (वा के0 ) वा, एटले अथवा (विसमणा के०) रिश्रमणाः, एटले विश्रमणो, अर्थात् विशेष प्रकारे करीने प्राणातिपातविरमण आदिक पांचे प्रकारनां महावृताने अखंमितरते सम्यकप्रकारे पालन करनारा एवा महान् मुनिराजो (गामाणुगामं के0 ) ग्रामानुग्राम, एटले एक गामय वीजे गाम, अर्थात् गाम आदिकोनी अंदर एक राजिनो निवास कर्यावाद, सांयी बीजे गाम (हुज्जमाणा के० ) हिंड्यमानाः, एटले हीमता एवा, अर्थात् विहार करता एवा ( रायणिया के ) रात्रिकाः, एटले रनोवाला, अर्थात् सम्यग्झान, सम्यग्दर्शन, अने सम्यग्चारित्ररूपी जावरननो व्यापारकरता, एवाबृहत पर्यायना दरज्जान धारणकरनारा श्रीआचार्यजी महागजो ( संपुळंति के० ) संप्रश्नयंति, एटले प्रश्न करे डे, अर्थात् सम्यक्मकारे पूजे जे. शुं पूठे ? तो के, ज्यारे हुं तेनने वंदन आदिक क्रिया करीलेलं हूं, सारे शरीरने मुखसाना आदिक पूढे ठे. ॥ नमरायणिया वंदंति, अजोयान वंदंति, सावया वदंति, सावयान वंदति ॥ अर्थः-(नमरायणिया के ) अवमरानिकाः, एटले अवमरनोने धारण करनारा अर्थात् सामान्य प्रकारे सम्यगृहान, सम्यग्दर्शन, अने सम्यग् चारित्ररूपी रत्नोने साधारणरीते धारण करनारा एवा सामान्य साधुनने (वंदांत के) बंदते, एट ले वंदन करवामां आवे ; अर्थात् हं पण तेवा सामान्य प्रकारे महाहतोनुं पालन करनारा सामान्य साधुनने वंदना करुं छं. ॥श्श्॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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