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________________ साधु प्रति० ॥१२७॥ महाराज तरफनुं वचन जारावं. एवीरीत पेहेला पाक्षिक सामगानो अर्थ समाप्त यय. हवे वीजां पाक्षिक संबंध कामलानो अर्थ लखाय ते. हवे चैस संबंधि तथा साधु संबंधि वंदनने निवेदन करवानी इच्छा करतोयको शिष्य श्राचार्यजी महाराज ते विनंति करे बे. ॥ इवामि खमासमणो पुधिं चेश्याई वंदित्ता, नमसित्ता, ॥ अर्यः( खेमासमणो के० ) क्षमाश्रमण, एटल हे क्षमाश्रमण ! अर्थात हे क्षमारूपी महान् गुणने धारण करनारा गुरुमहा(राज ! ( इच्छामि के० ) इहामि, एटले हुं इच्तुं कुं; अर्थात हुं मारामनमां एबीरीतनी जिलापा राखुंडं. केवीरीतनी जिलापाराखुं छु ! तो के, चैख संबंधि वंदना करवाने हुं अजिलापा घरा ; तेमज साधु संबंधि वंदना करवामां पण हुं मारी - जिलापा धरा. एवीरीते निवेदन कराववाने हुं हुं हवे हुं शुं इच्छु? तोके, (पुधिं के० ) पूर्वे एटले पूर्वकालमां, एटले चैखोने, अर्थात् जिनेश्वरमजुनी प्रतिमानने, एटले साधु, साधवी, श्रावक ने श्राविकान्ने वंदन करवालायक, तथा आ सं साररूपी समांथी तारवाने नाव समान श्री अरिहंत प्रजुनी प्रतिमानने ( वंदित्ता के० ) वंदिला, एटले वांदोंने, अर्थात् श्री अरिहंत जुनां चैसोने, एटले तेमनी प्रतिमानने शुन प्रकारनी विधिपूर्वक वंदन करीने, तेमज (नमंत्रित्ता के 7 ) नमस्कृस, एटले नमीने, अर्थात् श्रीवीतराग प्रजुन प्रतिमाने विधिपूर्वक नमस्कार करीने, एटले श्रीमरिहंत प्रतुती प्रप्रतिमानने वांदीने तथा नमस्कार करीने; हवे ते क्यां वांदीने, तथा नमस्कार करीने? तो के, पायमूजे विहरमागं, जे केइ बहुदसिया साडुलो दिट्ठा ॥ तु ॥ अर्थ:-( तुम के० ) युष्माकं, एंटले तमारा अर्थात् हे श्रीप्राचार्यजी महाराज ! आपसाहेबना ( पायमूले के० ) पादमूले, एटले चरणसमीपे अर्थात् हे श्रीगुरुं महाराज ! आपसाहेबना चरणकमलोनी समीपमा रहने श्री अरिहंतप्रभुननी प्रतिमानने वांदाने, तथा तेनने नमस्कार करीने ( विहरमाणं के० ) विहरमाणेन एटले विहार करतांयकां, अर्थात् मास कल्परूप विहार करतायकां, तथा तेमज वर्षाकालनी अंदर चतुर्मासकल्परूप विहार करतांयकां, एटले प्रभु वर्णवेली विधि प्रमाणे विहार करतांकां ( जे केइ के० ) ये केऽपि, एटले ने कोई, अर्थात् जे पण कोइ ( बहुदिव - श्री Jain Education nternational For Personal & Private Use Only सूत्र अर्यः ||११|| www.jainellary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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