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________________ साधु मति ॥१५॥ ॥ अश्मत्तेय आहारे । सूरखित्तंमिसंकिए । राश्नोयणस्त वेरमणे । एस वुत्ते अश्क्कम्मे ॥ ३ । सूत्र अर्थः-(य के०) च एटले वली (अश्मत्ते के ) अतिमात्र एटले विगय आदिके करीने असंत रस गुक्त तथा स्नि- अर्थ: ग्य आहारर्नु अतिमात्रायें करीने जे लोजन करयुं ते. अतिमात्र कहेवाय. एवीरीतना (पाहारे के) आहारने विष अर्थात् एवा प्रकारना नोजननी अंदर. हवे ते लोजन कहे तो के, (मूरखित्तमिसंकिए के0) सूर्यत्रिशंकित एटले श्रा समयने विपे हुँ जे जगोए वसुंछ , ते क्षेत्रनी अंदर आ वर्तमान समये सूर्यनीहजु हयाति ? अथवा नथी? अर्थात् आ वर्तमान स. मयनी अंदर मूर्यनो अस्त थयो ले के नही? एवी मननी अंदर शंका होतेबते. अर्थात् मूर्यास्त संबंधि हजु शंका होय त्यारे लगलग वेलायें जे नोजन करवू ( एस के0) एषः एटले तेने अर्थात् लगनग वेलायें जे नोजन करघु ते (राश्नोयाणस्स के०) रात्रिनोजनस्य, सूर्यनो अस्त ययापनी करेलां रात्रि जोजनना (वेरमणे के0) विरमणे एटले विरमणरूप अर्यात् रात्रिनोजनयको निवर्त्तवारूप (बुत्ते के0 ) हत्ते एटले रात्रिनोजनविरमण नामना बहा वृत्तनी अंदर (अश्कमे के0) अतिक्रमाः एटले अतिक्रमो जाणवा. अर्यात मूर्यास्त संबंधि शंका होतेबते जे जोजन करवू तेने बहा रात्रिनोजनविरमण नामना वृत्तना अतिचार जाणवा. ॥ दसण नाण चरिने । अविरादित्ता छिन समण धम्मे । पढमं वयमगुरस्के । विरयामो पा पाश्वायान ॥शा ____ अर्थ:-(दसण के० ) दर्शनं एटले सुगुरु सुदेव अने मुधर्मने आदरवारूप तथा कुगुरु कुदेव अने कुधर्मने तजवारूप जे सम्यक्त्व ते दर्शन कहेवाय. तथा (नाण के० ) ज्ञान एटले मतिज्ञान, श्रुतझान, अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान तथा केवलझान एम पांच प्रकारनुं जे ज्ञान ते नाण कहेवाय, तथा (चरित्ते के०) चारित्रं एटले पांच प्रकारनु चारित्रं. एवीरीते ज्ञान दर्शन अने चारित्र एम त्रणेने ( अविराहिता के ) अविराधयित्वा एटले कोइपण प्रकारनी विराधना न नपजावीने अर्थात् ॥१५॥ झान दर्शन अने चारित्रने कोपण प्रकारे विराध्याविना (समणधम्मे के० ) श्रमणधर्म एटले साधु धर्मनी अंदर अर्थात् यनिर्णन विषे (हिन के) स्थितः एटले रहेलो एवो हुँ, अर्यात् पंच महारत्तोने धारण करवारूप जे सयंम तेने अंगीकार क Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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